बेल्जियम में चुनाव के करीब डेढ़ साल बाद सरकार का गठन हो पाया। और इस सरकार ने गठित होने के बाद किस महत्वपूर्ण काम को हाथ में लिया? इसने यूरोप के बाकी देशों की तर्ज पर अपने यहां किफायत कार्यक्रम लागू करना शुरु कर दिया। यह कार्यक्रम देश की अर्थव्यवस्था के आकार को देखते हुए बहुत बड़ा है।
तथाकथित समाजवादियों की भागेदारी वाली सरकार के इस किफायत कार्यक्रम के खिलाफ तुरन्त ही मजदूर वर्ग का बड़े पैमाने का विरोध शुरु हो गया है। दिसम्बर में करीब अस्सी हजार मजदूरों ने हड़ताल और प्रदर्शन में हिस्सा लिया। यह पिछले सालों में सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन है।
इस प्रदर्शन के बाद सरकार को पीछे हटते न देख मजदूर ट्रेड यूनियनों ने इस 30 जनवरी को एक दिन की आम हड़ताल का आह्वान किया है। इसके बाद अप्रैल में दो दिन का और फिर जून में तीन दिन के आम हड़ताल की योजना बनाई गयी है। बेल्जियम का मजदूर वर्ग पूंजीपति वर्ग के खिलाफ संघर्ष में उतर रहा है।
आर्थिक संकट के और गहराने के साथ पूंजीपति और मजदूर वर्ग के बीच संघर्ष लगातार उग्र होता जा रहा है। पूंजीपति वर्ग मजदूरों पर हमला और तेज करते हुए उनकी बची-खुची सुविधाओं को भी छीन लेना चाहता है। वह पूरी बीसवीं सदी को गायब कर उन्हें उन्नीसवीं सदी में पहंचाना चाहता है।
मजदूर वर्ग पिछले तीन दशक में लगातार पीछे हटता रहा है। लेकिन अब उसके लिए पीछे हटने का मतलब सीधे रसातल में जाना है। इसीलिए वह अपने पांव अड़ा रहा है। पूंजीपति वर्ग के खिलाफ संघर्ष में रक्षात्मक संघर्ष की उसकी स्थिति अब समाप्त हो रही है। अब आक्रमण का समय आ रहा है।
बेल्जियम के मजदूर भी अब यूरोप के अन्य देशों के मजदूरों की तरह मैदान में उतर रहे हैं।
तथाकथित समाजवादियों की भागेदारी वाली सरकार के इस किफायत कार्यक्रम के खिलाफ तुरन्त ही मजदूर वर्ग का बड़े पैमाने का विरोध शुरु हो गया है। दिसम्बर में करीब अस्सी हजार मजदूरों ने हड़ताल और प्रदर्शन में हिस्सा लिया। यह पिछले सालों में सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन है।
इस प्रदर्शन के बाद सरकार को पीछे हटते न देख मजदूर ट्रेड यूनियनों ने इस 30 जनवरी को एक दिन की आम हड़ताल का आह्वान किया है। इसके बाद अप्रैल में दो दिन का और फिर जून में तीन दिन के आम हड़ताल की योजना बनाई गयी है। बेल्जियम का मजदूर वर्ग पूंजीपति वर्ग के खिलाफ संघर्ष में उतर रहा है।
आर्थिक संकट के और गहराने के साथ पूंजीपति और मजदूर वर्ग के बीच संघर्ष लगातार उग्र होता जा रहा है। पूंजीपति वर्ग मजदूरों पर हमला और तेज करते हुए उनकी बची-खुची सुविधाओं को भी छीन लेना चाहता है। वह पूरी बीसवीं सदी को गायब कर उन्हें उन्नीसवीं सदी में पहंचाना चाहता है।
मजदूर वर्ग पिछले तीन दशक में लगातार पीछे हटता रहा है। लेकिन अब उसके लिए पीछे हटने का मतलब सीधे रसातल में जाना है। इसीलिए वह अपने पांव अड़ा रहा है। पूंजीपति वर्ग के खिलाफ संघर्ष में रक्षात्मक संघर्ष की उसकी स्थिति अब समाप्त हो रही है। अब आक्रमण का समय आ रहा है।
बेल्जियम के मजदूर भी अब यूरोप के अन्य देशों के मजदूरों की तरह मैदान में उतर रहे हैं।
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