अन्ना हजारे की ‘दूसरा गान्धी’ बनने की जबर्दस्त हसरत है। उसके चाटुकारों और उनका इस्तेमाल करने वाले चतुर-चालाक लोगों ने तो उन्हें ‘दूसरा गान्धी’ घोषित कर दिया है। लेकिन जैसा कि कहते हैं ‘इतिहास अपने को प्रहसन के रूप में ही दोहराता है।
जब 1922 में चैरी-चैरा की घटना के बाद गान्धी प्रथम यानी महात्मा गान्धी ने असहयोग ओन्दोलन वापस लिया तो इनके प्रिय शिष्य और संरक्षित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था - ‘दुनिया का अंत इसी तरह होता है: धमाकेदार विस्फोट के साथ नहीं बल्कि एक फुसफुसाहट के साथ।’ अब ‘गान्धी द्वितीय’ यानी अन्ना हजारे के जनलोकपाल बिल आंदोलन का अंत भी वैसा ही अंत होता दीख रहा है।
अगस्त की घटनाओं के आद अन्ना हजारे एण्ड कंपनी की महत्वकाक्षाएं बहुत बढ़ गयी थीं। हालांकि अंत में उन्हें सिरियाकर सरकार से संसद में एक प्रस्ताव मांगना पड़ा था जिससे अन्ना हजारे सम्मानपूर्वक अपना अनशन तोड़ सकें पर उन्हें लगता था कि वे एक बार फिर वैसा ही बड़ा तमाशा खड़ा कर सकते हैं। 11 दिसंबर को जन्तर-मंतर पर अपने-अपने समीकरणों के तहत पहुंचे विपक्षी नेताओं ने उनके हौसले और बढ़ा दिये थे। वे अपनी ही सफलताओं के बंदी बन गये थे।
और फिर इतिहास ने बेहद भद्दे ढंग से इस प्रहसन का मंचन किया- और खास तौर पर ‘गान्धी द्वितीय’ के लिए। अन्ना हजारे एण्ड कंपनी ने पहले तीन दिन के अनशन और फिर जेल भरो आंदोलन का आहवान कियां- उनके मन माफिक लोकपाल बिन बनाने के लिए। उन्होंने भीड़ जुटाने के अपने नुसखों के तहत अनशन का स्थल भी अब मुंबई कर दिया, दिल्ली की सर्दी से बचने के लिए। लेकिन दो दिनों में ही उनकी सारी हवा निकल गयी और बेहद बेचारगी मं उन्होंने अपना अनशन और जेल भरो आंदोलन कार्यक्रम रद्द कर दिया। ठीक उसी समय जब लोकपाल बिल संसद में बहस का विषय था तब अन्ना हजारे एण्ड कंपनी लुट-पिट कर अपने घर चले गये। अपने पक्षधर टी.वी. चेनलों पर दहाड़ने वाले अन्ना हजारे एण्ड कंपनी अब मिमिया कर अपनी रक्षा करते नजर आये।
खबर है कि राज्य सभा में बिल पारित होने के बाद वे अपने आंदोलन की आगे की रणनीति बना रहे हैं।
और कांग्रस पार्टी तथा कांग्रेस सरकार ? वे नौ महीने की जूतम पैजार के बाद मुस्करा रहे हैं। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे कांग्रेसी अब इस बात का श्रेय ले सकते हैं कि लोकपाल बिल पारित कराने का उन्होंने पूरा प्रयास किया लेकिन विपक्षियों ने उसे पास नहीं होने दियां राज्य सभा में जिस मुख्य मुद्दे (राज्यों में लोकायुक्त गठित करने वाला लोकपा बिल का प्रावधान) पर कांग्रेस सरकार के बहुमत नहीं मिला उस पर अन्ना हजारे एण्ड कंपनी और कांग्रेस सरकार एक साथ हैं जबकि विपक्षी विरोध में। विपक्षी संघीय ढांचे के उल्लघंन की बात कर इसका विरोध कर रहे हैं। अन्ना हजारे एण्ड कंपनी का संघीय ढांचे से कोई सरोकार नहीं। उसे तो बस कठोर केन्द्रीकृत लोकपाल चाहिए। कांग्रेसी हमेशा से ही केन्द्रीयता के पक्ष में रहे हैं। अब कांग्रेस पार्टी मजे में कह सकती है कि संघीय ढांचे का सवाल उठाकर विपक्ष ने लोकपाल बिल पास नहीं होने दिया। यदि अन्ना हजारे एण्ड कंपनी इस बात को नकारते हैं तो वे झूठ बोलने के दोषी होंगे।
देश को 126 साल से बेवकूफ बनाकर ठगने वाले कांग्रेसियों ने एक बार फिर अपने प्रतिद्वन्द्वियों से बाजी मारीं है। वे लोकपाल के सरे तू-तू मैं-मैं से सबसे ज्यादा बेहतर ढंग से बाहर आये हैं। विपक्षी अपने ही हाथों अपने गाल पर थप्पड़ मार रहे हैं। जब विपक्षी नेता जन्तर-मन्तर पर जाकर एक बात करते हैं और संसद में दूसरी तो वे अपनी ही ऐसी-तैसी करा रहे होते हैं। आखिर मजे हुए पुराने ठगों ने छुटभैयों को उनकी औकात दिखा दी।
रही अन्ना हजारे एण्ड कंपनी की बात तो अब पूंजीवादी राजनीति की पर्याप्त कालिख उनके चेहरे पर भी पुत चुकी है। उसके मुख्य लोग स्वयं ही भ्रष्टाचारी साबित हो चुके हैं। झूठ बोलने,बात बदलने और पूंजीवादी राजनीतिज्ञों की बराबरी करने लगे हैं। बस उनका अनुभव थोड़ा कम है। वक्त से वह भी उन्हें मिल जायेगा। तब वे पूर्णतया सत्ता के दलाल बन जायेंगे। यही उनकी नियति है। बस इनकी चिकनी-चुपड़ी बातों में अब भी जिनका यकीन है, सबसे ज्यादा छला महसूस करेंगे।
रही भ्रष्टाचार की बात तो चाहे लोकपाल हो या न हो या फिर वह चाहे जैसा हो, वह बढ़ता ही जायेगा। वर्तमान पतित पूंजीवाद की यही नियति है।
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