अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने 15 दिसम्बर को इराक से अपनी सभी सेनाओं की वापसी की घोषणा कर दी है। उनके सरगना बराक ओबामा के अनुसार अब इराक में अमेरिकी सैनिक कार्यवाही समाप्त हो गई है।
मार्च 2003 में इराक पर अमेरिकी हमले के बाद से अब तक करीब 9 साल गुजर चुके हैं। इस दौरान अमेरिकी हमले और कब्जे में इराक के करीब दस लाख लोग मारे गये हैं तथा पचासों लाख लोग बेघर हो गये हैं। एक अपेक्षाकृत समृद्ध देश को अमरीकी साम्राज्यवादियों ने पिछले 20 सालों में तबाह कर दिया।
2003 से अब तक इराक पर अमेरिकी हमले और कब्जे में करीब 5 हजार अमेरिकी सैनिक मारे गये और करीब 32 हजार घायल हुए। करीब दस लाख इराकी लोगों की तुलना में 5 हजार अमरीकी सैनिक नगण्य हैं पर इतने से भी अमरीका में हाहाकार मच गया। अमरीका में इस घृणित हमले के खिलाफ जो विरोध पैदा हुआ उसने अमरीकी साम्राज्यवादियों को मजबूर कर दिया कि वे इराक से अपनी सेना वापस बुलायें।
2003 में महाविनाशक हथियारों के झूठे बहाने के साथ अमरीकी साम्राज्यवादियों ने इराक पर इसलिए हमला किया था कि वे तेल और भू-रणनीतिक महत्व के इस देश पर कब्जा कर लें। उन्होंने कब्जा कर भी लिया। पर इराकी जनता के तीखे प्रतिरोध ने उनके दांत खट्टे कर दिये। वक्त के साथ स्पष्ट होता गया कि उन्हें इराक छोड़कर जाना होगा।
इराक पर अपने कब्जे के दौरान अमरीकी साम्राज्यवादियों ने वहां फर्जी चुनाव करवाकर अपने पिट्ठू लोगों को सत्ता में बैठाया। वे उम्मीद कर रहे हैं कि ये पिट्ठू लोग उनके लिए काम करते रहेंगे।
असल में अमरीकी साम्राज्यवादी वहां सैनिक तौर पर भी मौजूद हैं। अमरीकी सेना वहां सलाहकारों और प्रशिक्षकों के तौर पर मौजूद है। बगदाद स्थित अमरीकी दूतावास दुनियाभर में अमरीका का सबसे बड़ा दूतावास है। यह खासकर सैनिक उद्देश्य से ही बनाया गया है। ढेरों निजी अमेरिकी सुरक्षा कम्पनियां इराक में मौजूद हैं।
इनकी और सत्ता में बैठे अपने पिट्ठुओं की मदद से अमरीकी साम्राज्यवादी उम्मीद करते हें कि वे अपने उन उद्देश्यों में कामयाब होंगे जिसके लिए उन्होंने 2003 में हमला किया था। पर इनकी राह में कई अड़चने हैं। जब तक वे अपनी पिट्ठू सरकार नहीं बैठा देते तब तक इराक उनकी मुट्ठी में पूरा नहीं आयेगा। दूसरी ओर अमरीकी सैनिकों को देश छोड़ने के लिए मजबूर करने वाली इराकी जनता अब चुप नहीं हो जाने वाली। भलाकी जैसे पिट्ठुओं का आगे जीना हराम हो जायेगा।
इराक में इस तरह आंशिक तौर पर पराजित होने के बावजूद अमरीकी साम्राज्यवादी अपनी साम्राज्यवादी आकांक्षाओं के वशीभूत दूसरी जगह हमला करने के लिए तैयारी कर रहे हैं। बराक ओबामा ने अफगानिस्तान में अपना सैनिक अभियान पहले से तेज कर रखा है। इंग्लैण्ड-फ्रांस के साथ मिलकर अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने लीबिया पर हमला कर और गद्दाफी की हत्या कर अपनी पिट्ठू सरकार बैठा दी है। वे सीरिया में लीबिया का प्रयोग दोहराना चाहते हैं। इरान पर हमले की तैयारियां जारी हैं।
दुनिया में जब तक साम्राज्यवाद है तब तक साम्राज्यवादी ऐसा ही करते रहेंगे। पर दुनिया अब पहले जैसी नहीं है। खासकर इस साल की शुरुआत से स्वयं साम्राज्यवादी देशों में जो जनता के संघर्ष शुरु हुए हैं वे साम्राज्यवादियों के लिए वक्त के साथ बड़ी चुनौती बनेंगे। साम्राज्यवादी युद्ध का विरोध ऑक्युपाई वॉल स्ट्रीट आन्दोलन का अहम हिस्सा है।
साम्राज्यवादी देशों में जब यह संघर्ष आगे बढ़ेगा तब वहां के लोग यह याद रखेंगे कि अपने संघर्ष के लिए इराक, अफगानिस्तान और लीबिया के प्रतिरोध संघर्षों ने कितना कुछ किया।
दुनिया यदि साम्राज्यवादियों की लूट-पाट के लिए एक हो गई है तो उनके खिलाफ मजदूर-मेहनतकश जनता द्वारा संघर्षों के लिए भी।
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