फ्रांसीसी और जर्मन साम्राज्यवादियों के जी.तोड़ प्रयासों के बावजूद यूरोक्षेत्र और यूरोपीय संघ का अस्तित्व लगातार खतरे में पड़ता जा रहा है। इसी के साथ यूरोप के विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के भी ध्वस्त होने का खतरा बढ़ रहा है।
पहले जर्मन और फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों ने सोचा था कि वे ग्रीस, इटली, स्पेन और पुर्तगाल के मजदूर वर्ग को और ज्यादा निचोड़कर अपने बैंकों को बचा लेंगे और वर्तमान संकट से उबर जाएंगे। लेकिन बाद में उन्होंने पाया कि उनकी करतूतों के कारण संकट और बढ़ता ही जा रहा है। स्थिति वहां पहुंच गई है कि उन्होंने ग्रीस और इटली दोनों की चुनी हुई सरकारों को हटा कर न चुनी हुई तथाकथित टेक्नोक्रेटिक सरकारें बैठा दीं। अपने द्वारा बहुप्रचारित जनतंत्र के साथ उन्होंने यह व्यवहार किया।
लेकिन इसके बावजूद संकट न तो थम सकता था और न थमा। अब आठ-नौ दिसंबर को उन्होंने यूरोपीय देशों का एक विशेष सम्मेलन इसीलिए आयोजित किया। इसमें फ्रांसीसी और जर्मन साम्राज्यवादियों ने घोषित किया कि संकट से उबरने के लिए और ज्यादा वित्तीय एकीकरण किया जाएगा तथा सरकारों द्वारा वित्तीय अनुशासन का और सख्ती से पालन कराया जाएगा। इसी के साथ यूरोपीय केंद्रीय बैंक ज्यादा खुले हाथों से संकट ग्रस्त देशों को पैसा उपलब्ध कराएगा।
इन कदमों का ब्रिटेन जैसे यूरोपीय संघ के अन्य देशों ने विरोध किया है। जो यूरो मुद्रा और यूरो क्षेत्र के पहले से विरोधी थे वे इसे अपनी बात का प्रमाण मानते हैं।
फ्रांसीसी और जर्मन साम्राज्यवादी बेहद चिंतित हैं क्योंकि इससे न केवल यूरो क्षेत्र और यूरोपीय संघ की उनकी परियोजना खतरे में है बल्कि स्वयं इनकी अपनी अर्थव्यवस्थाएं भी गंभीर खतरे का सामना कर रही हैं। ग्रीस और इटली जैसे देशों की सरकारों के दीवालिया होने से फ्रांसीसी और जर्मन बैंक भी दीवालिया हो जाएंगे और तब ये अर्थव्यवस्थाएं भी रसातल में चली जाएंगी। अभी ही वे गंभीर संकट की शिकार हैं। इनके साथ ही अटलांटिक पार अमेरिकी साम्राज्यवादियों की सांसे भी थम रही हैं।
साम्राज्यवादियों ने पूरी कोशिश की थी कि वे संकट का पूरा बोझ मजदूर वर्ग पर डालकर बच निकलें। पर ऐसा नहीं हुआ। संकट बढ़ता ही गया है। यही नहींए धीमे-धीमे अपनी बदहाली से त्रस्त मजदूर वर्ग भी उठ खड़ा हो रहा है। अभी 30 नवंबर को ब्रिटेन में सार्वजनिक क्षेत्र के 20 लाख मजदूरों ने हड़ताल कर समूचे ब्रिटेन को ठप कर दिया था। ‘‘असली जनतंत्र‘‘, ‘‘सामाजिक न्याय‘‘ और ‘‘ऑक्युपाई‘‘ आंदोलन तो मजदूर वर्ग की ओर से शुरुआत मात्र हैं।
आने वाला वक्त साम्राज्यवादियों के लिए और भयानक होगा।
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