दुनिया भर में पूंजीवादी शासकों और पूंजीवाद के विरुद्ध विरोध प्रदर्शनों की श्रृंख्ला में अब रूस का नाम भी जुड़ गया है। एक लंबे अर्से के बाद रूस में हजारों की संख्या में लोगए खासकर युवा सड़कों पर उतर आए।
इन विरोध प्रदर्शनों का तात्कालिक प्रेरक 4 दिसंबर के संसद (दूमा) के चुनाव थे जिनमें बड़े पैमाने पर धांधली की आशंका जताई जा रही है। इन चुनावों में पुतिन,मेदवेदेव मंडली की पार्टी युनाइटेड रशिया को 49.5 प्रतिशत मत मिले। पिछले चुनावों में इस पार्टी को 64 प्रतिशत मत मिले थे। युनाइटेड रशिया को संसद में थोड़ी सी सीटों का बहुमत हासिल हुआ है। कहा जा सकता है कि इन चुनावों में कम से कम 5.7 प्रतिशत मतों की धांधली हुई है।
पुतिन और मदेवेदेव की यह मंडली लंबे समय से रूस पर शासन करती रही है। दो बार राष्ट्रपति रहने के बाद पुतिन ने मेदवेदेव को राष्ट्रपति बनावा दिया और स्वयं प्रधानमंत्री बन गए। अब एक बार फिर वे पदों की अदल.बदल कर रहे हैं। पुतिन का इरादा अगले बारह सालों तक (दो बार) राष्ट्रपति बने रहने का है।
पुतिन और मेदवेदेव की इस जोड़ी ने रूस के पूंजीपति वर्ग की खूब सेवा की है। इसीलिए उसको पूंजीपति वर्ग का समर्थन भी मिला है। इसने पश्चिमी साम्रज्यवादियों के एजेंट और विदूषक बोरिस एल्सिन के बाद रूस को फिर से उनके सामने खड़ा किया। इनके नेतृत्व में रूसी साम्राज्यवादियों ने पश्चिमी साम्राज्यवादियोंए खासकर अमरीकियों का अनेक मामलों में विरोध किया।
पश्चिमी साम्राज्यवादियों को यह नागवार गुजरा है। एल्सिन के जमाने में रूस को लूटने खसोटने की उन्हें जो छूट मिली थी उस पर कुछ पाबंदी लगने से वे नाखुश थे। इसी के साथ वे दुनिया भर में अपनी लूट-खसोट और दादागिरी पर कुछ सवाल उठने से भी वे नाराज थे। इसीलिए दुनिया भर में तानाशाहों को पालने पोसने वाले ये साम्राज्यवादी रूस में जनतंत्र विकृत होने की बात करते रहते थे।
वर्तमान संकट के गहराने के पहले प्राकृतिक संसाधनों की बिक्री के दम पर पुतिन-मेदवेदेव मंडली रूस में समृद्धि का भ्रम पैदा कर रही थी। पश्चिमी साम्राज्यवादी पूंजी भी वहां खूब मुनाफा कमा रही थी। इनके मुकाबले 1990 के दशक में छुट्टे पूंजीवाद के लागू होने के समय से ही तबाह हुआ मजदूर वर्ग किसी तरह जीवन बसर कर रहा था।
2007 में आर्थिक संकट शुरु होते ही समृद्धि का यह भ्रम गायब हो गया। रूस की आर्थिक वृद्धि दर तेजी से नीचे चली गई। इसमें गिरावट अमेरिकाए ब्रिटेन व फ्रांस इत्यादि से भी ज्यादा थी। स्वाभाविक था कि इससे सबसे ज्यादा प्रभावित मजदूर वर्ग ही होता। आर्थिक संकट के गहराने के साथ मजदूर वर्ग का खासकर बेरोजगार नौजवानों का असंतोष बढ़ता गया। रूस में भी तथाकथित समृद्धि से फायदा पूंजीपतियों ने उठाया था और अब आर्थिक संकट का बोझ मजदूर उठा रहे हैं।
वर्तमान चुनावों में धांधली ने इस असंतोष को ही अभिव्यक्ति प्रदान की है। अन्य देशों की तरह इन विरोध प्रदर्शनों में भी शुरुआत में बेरोजगार युवा ही आगे आए हैं। पुतिन-मेदवेदेव की मंडली विरोध प्रदर्शन को कुचलने का पूरा प्रयास कर रही है।
रूस में भी पश्चिमी साम्रज्यवादीए खासकर अमेरिकी साम्रज्यवादी सक्रिय हैं और वे अपनी गोटी बैठाना चाहते हैं। उनके पैसों से चलने वाले गैर सरकारी संगठन चुनावों में धांधली का सबसे ज्यादा प्रचार कर रहे हैं। इंटरनेट पर प्रचार में ये ही सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। अमेरिका की विदेश सचिव ने चुनावों के स्वतंत्र और निष्पक्ष न होने की घोषणा कर दी है। स्वयं पूंजी द्वारा नियंत्रित चुनावों वाले अमेरिकी शासकए जो अपने यहां ऑक्युपाई आंदोलन को कुचल रहे हैंए वे रूस में बढ़ रहे असंतोष और विरोध में अपने हाथ सेंकना चाहते हैं।
रूस के ज्यादा खाते-पीते कुछ नौजवान भले ही अमेरिकी साम्रज्यवादियों के प्रचार के प्रभाव में हों पर ज्यादातर नौजवान और मजदूर अमेरिकी साम्राज्यवाद की हकीकत जानते हैं। वे वहां तीन महीने से चल रहे ऑक्युपाई आंदोलन से भी भली-.भांति परिचित हैं। इसलिए वे अमरिकी साम्राज्यवादियों की चालों में नहीं फंसने वाले।
2011 के विद्रोही साल में रूस के लोगों ने साल खत्म होने के पहले ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। रूस अक्टूबर क्रांति का देश है। यह वह देश है जहां कम्युनिज्म के खिलाफ सारे प्रचार के बावजूद वहां की नकली कम्युनिस्ट पार्टी को इन चुनावों में 20 प्रतिशत वोट मिले।
रूस का मजदूर वर्ग अक्टूबर क्रांति और दुनिया में पहले समाजवादी समाज का वारिस है। उसकी शानदार परम्परा और विरासत है। वक्त के साथ रूस में इसकी भूमिका स्पष्ट होती जाएगी।
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