Friday, November 25, 2011

एक बार फिर विद्रोही चौक में

मिश्र के लोग एक बार फिर सडकों पर हैं।
         एक लंबे समय तक धैर्य पूर्वक इंतजार करने के बाद अब मिश्र के लोगों का धैर्य जवाब दे गया है। फरवरी में होस्नी मुबारक को सत्ता से खदेड़ने के बाद उन्होंने सोचा था कि देश की राजनीतिक-आर्थिक स्थितियों में कोई बदलाव आयेगा। लेकिन अब नौ महीने गुजर जाने के बाद उनके लिए स्पष्ट हो गया कि होस्नी मुबारक के बाद सत्तारुढ़ हुयी सैनिक सरकार कुछ नहीं बदलने देगी। और लोग एक बार फिर तहरीर चौक और सड़कों पर आ खड़े हुए हैं।

          मिश्र की सेना होस्नी मुबारक की तानाशाही का अभिन्न हिस्सा थी। मुबारक भी पहले सैनिक अफसर ही था। दोनों को अमेरिकी साम्राज्यवादियों का समर्थन हासिल था। मुबारके के पतन के बाद मिश्र के पूंजीपति वर्ग और साम्राज्यवादियों ने पूरी चालाकी से साथ उसी पुरोन सैनिक तंत्र को सत्ता सौंप दी और घोषित किया कर दिया कि वहां क्रांति हो गयी है।
         असल में साम्राज्यवादियों द्वारा पालित-पोषित यह सैनिक सत्ता होस्नी मुबारक से भी ज्यादा खूंखार साबित हुयी। उसने पिछले नौ महीने में बारह हजार से ज्यादा लोगों को विद्रोह के लिए सैनिक अदालत में दंडित किया है। इसने यंत्रणा देने से लेकर मुसलमानों व इसाइयों में दंगा भड़काने का काम किया है। उसने मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ सांठ-गांठ कर जनतंत्र मे संक्रमण को नाम मात्र का कुचक्र रखा है। उसने सत्ता छोड़ने की तारीख खिसकाते हुए उसे 2013 तक के लिए टाला है।
         फरवरी में मुबारक को खदेड़ने के बाद मिश्र के मजदूर और नौजवान घरों में नहीं बैठे। वे लगातार सड़क पर उतर रहे हैं वे पूंजीपतियों,साम्राज्यवादियों और ब्रदरहुड को कुछ भी न बदलने देने की चाल में कामयाब नहीं होने देंगे। अब इसी को आगे बढ़ाते हुए एक बार फिर तहरीर चौक पर आ डटे हैं और ऐलान कर दिया है कि सैनिक अफसरों से नागरिकों की परिषद को सत्ता हस्तांतरण के बाद ही वहां से हटेंगे।
         मिश्र में इस नये विस्फोट से यथास्थितिवादी शक्तियों के हाथ पांव फूल रहे हैं। वे कुछ पीछे हटने का  दिखावा करते हुए इस विस्फोट को शान्त करना चाहते हैं। इसी कड़ी में उन्होंने तथाकथित प्रधानमंत्री से इस्तीफा दिलवा दिया है और राष्टरपति का चुनाव करवाकर सत्ता छोड़ने की तारीख 2012 घोषित कर दी है। लेकिन अब उनकी चाल कामयाब नहीं होने वाली। खासकर इसलिए की मजदूर वर्ग की कोई भी आर्थिक मांगे नहीं मानी गयी हैं। मुबारक को भगाने वाले विद्रोही मजदूर इसे नहीं बर्दाश्त करेंगे।
        मिश्र में इसी घटनाक्रम के बीच साम्राज्यवादियों और खाड़ी देशों के उनके पिटठू शासकों ने यमन की विद्रोही जनता को सालेह से इस्तीफा दिलवाकर धोखा देने की कोशिश की है। उन्होंने सालेह के बदले उसके उपराष्टरपति को सत्ता सौंपी है जो बाद में चुनाव करवायेगा। खाड़ी के मध्युगीन शेख और राजा यमन में जनता को जनतंत्र का लालीपॉप थमा रहे हैं और वह भी इस विद्रोही समय में। विद्रोही जनता से इतना भददा मजाक केवल मध्ययुगीन शासक ही कर सकते हैं। विद्रोही जनता के पीठ पीछे इस सौदेबाजी को तुरंत ही यमन की विद्रोही जनता ने बड़े विरोध प्रदर्शन कर आयोजित कर रद्द कर  दिया। वह सालेह के पूरे शासन तंत्र के खात्में से कम कुछ भी नहीं चाहती।
         यमन में विद्रोही जनता को इस तरह ठगने की कोशिश करने वाले खाड़ी के मध्ययुगीन शासक सीरिया में यही करने का प्रयास कर रहे हैं। वे तुर्की के शासकों की मदद से सीरिया में लीबिया को दोहराना चाहत हैं। वे बशीर असद के खिलाफ वास्तविक विद्रोह को किनारे लगाकर अपने पिटठुओं से वहां हिंसक अराजकता फैलाकर साम्राज्यवादी हस्तक्षेप की पृष्ठभूमि तैयार करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। साम्राज्यवादियों के ये पिटठू यही करेंगे। पर चीन व साम्राज्यवादी रूस के अपने समीकरणों के चलते यह परियोजना अभी बहुत आगे नहीं बढ़ पा रही है।
         अरब  के मध्ययुगीन शासकों,इस्राइल व तुर्की के प्रतिक्रियावादी शासकों और साम्राज्यवादियों की इन चालों को ध्वस्त करने के लिए समूचे अरब की विद्रोही जनता,खासकर मजदूर वर्ग को अपने विद्रोह को नये चरण में ले जाना होगा।

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