साम्राज्यवादियों के नेतृत्व में दुनिया भर के पूंजीपतियों द्वारा आर्थिक संकट को थामने का एक और प्रयास असफलता में समाप्त हुआ। G-20 के झंडे तले कान्स (फ्रांस) में 3-4 नंवबर को इकट्ठा हुए पूंजीपति वर्ग के तमाम नेता कुछ चिकनी-चुपड़ी बातों के अलावा कुछ नहीं कर पाये। इसके उल्टे उनकी आपसी सिर फुटव्वल और सामने उभर कर आ गयी।
कान्स में इकट्ठा हुए G-20 के नेताओं ने स्वीकार किया कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की हालत बेहद खराब होती जा रही है। खासकर विकसित पूंजीवादी देशों में। उन्हें इस बात की भी चिन्ता सता रही थी कि भंयकर बेरोजगारी और गरीबी से जो भांति-भांति के आंदोलन उठ खड़े हो रहे हैं उन्हें कैसे रोका जाय।
लेकिन उन्हें पूंजी के मुनाफे की चिंता इससे ज्यादा थी। इसीलिए उन्होंने उदारीकरण की नीतियों को पलटने के संबंध में कोई बात नहीं की। सारी बात बस उदारीकरण-वैश्वीकरण के फ्रेमवर्क के भीतर बस कुछ कतर-ब्योंत की थी। लेकिन इससे क्या होगा ? इसने पिछले चार साल में आर्थिक संकट से कितनी निजात दिलायी।
इस लीपापोती के अलावा सारे ही देश अपनी-अपनी खींचतान में व्यस्त रहे। अमेरिका और इंगलैंड जानते हैं कि दक्षिण यूरोप देशों (ग्रीस,इटली,पुर्तगाल,स्पेन) का वित्तीय संकट इन्हें भी ग्रस लेगा यदि ये देश दिवालिया होने की तरफ जाते हैं। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इन्हें संकट से उबारने में मदद देने से मना कर दिया। हां, ये जरूर चाहते हैं कि इन देशों की सरकारें अपने मजदूरों को और चूसकर पूंजीपतियों के कुकर्मों की भरपाई करें। इन्होंने ग्रीस की पापेन्द्रू सरकार को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया।
दक्षिण यूरोप की सरकारों के दिवालिया होने खतरा कान्स की बैठक पर छाया रहा। इसके बावजूद वे इससे निजात का कोई रास्ता नहीं ढूंढ पाये। इसने निराशा-हताशा को और बढ़ाया।
कान्स में जी-20 की बैठक का यह नतीजा यह दर्शाता है कि दुनिया भर का पूंजीपति वर्ग वर्तमान आर्थिक संकट से निकलने में जरा भी सफल नहीं हो पा रहा है। मजदूर वर्ग को संकट के दौरान और ज्यादा लूटकर पूंजीपति वर्ग भले ही किसी हद तक अपना मुनाफा बनाये रख रहा हो, पर इससे समग्र संकट गहरा ही रहा है।
और यह गहराता संकट विरोध प्रदर्शनों को और ज्यादा बड़े पैमाने पर जन्म दे रहा है। डेढ़ महीना बीत जाने बावजूद अमेरिाका में ‘अकुपाई’ आंदोलन न केवल बना हुआ है अपितु और जोर पकड़ता जा रहा है। इसने कुछ शहरों में आम हड़तालों को जन्म दिया है। यूरोप में भी मई से शुरू हुआ बड़े पैमाने का विरोध प्रदर्शन एक के बाद दूसरी लहरों में जारी है।
पूंजीपति वर्ग की कंपकपी छूट रही है। यह अच्छी बात है।
बहुत सुंदर लेख लिखा हैं आपने
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