Friday, October 21, 2011

गद्दाफी का अंत

      लीबिया में साम्राज्यवादियों ने कर्नल गद्दाफी को मार गिराया है। गद्दाफी की हत्या के बाद वे वहां जनतंत्र कायम करने की बात कर रहे हैं। उनके प्रचार माध्यम धुंआधार प्रचारित करने में लगे हुए हैं कि तानाशाह गद्दाफी के खात्मे के बाद लीबिया में एक नये अध्याय की शुरुआत होगी।
      कर्नल गद्दाफी एक तानाशाह थे, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि वे एक लम्बे समय तक साम्राज्यवादियों के आंखो की किरकिरी थे। पिछले 7-8 सालों में साम्राज्यवादियों से सांठ-गांठ करने के बावजूद वे खाड़ी के अन्य तानाशाहों और अमीरों-शेखों की तरह साम्राज्यवादियों की कठपुतली बनने को तैयार नहीं थे। वे लीबिया की प्राकृतिक संपदा को लूटने के लिए साम्राज्यवादियां को छूट देने को तैयार नहीं थे।
      पिछले समयों में उन्होंने एक गुनाह और किया। वे अफ्रीका महाद्वीप को अपने पीछे एकजुट करने में लग गये थे। अफ्रीकी केन्द्रीय बैंक,अफ्रीकी मुद्रा कोष इत्यादि उनकी योजना का हिस्सा था। अफ्रीका के प्राकृतिक संसाधनों की लूट-पाट करने वाले साम्राज्यवादियों को यह कतई बर्दाश्त नहीं था।

      इसलिए जब अरब विद्रोह की श्रंखला में लीबिया में भी विद्रोह फूटा तो उन्होंने तुरंत मौके का फायदा उठाया। वे पहले से ही लीबिया में हस्तक्षेप की तैयारी कर रहे थे। अब मौके का फायदा उठाकर उन्होंने लीबिया पर हमला कर दिया। बहाना बनाया गया लीबिया में नागरिकों की रक्षा का। लगातार 7 महीनों की भीषण बमबारी के बाद आखिरकार वे अपने लक्ष्य में कामयाब हो गये हैं। चार दशक बाद लीबिया फिर उनके हाथ में आ गया है।
     लीबिया में जो इस समय तथाकथित सरकार बनी है वह उसी तरह कठपुतली है जैसे अफगानिस्तान व इराक में। उसमें साम्राज्यवादियों के पाले-पोषे हुए एजेन्ट या उनके जरखरीद गुलाम बैठे हुए हैं। यह तथाकथित सराकर लीबिया को लूटने के लिए अमेरिकी,ब्रिटिश ओर फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों को खुली छूट  देगी। इसके लिए नाटो के हमले के पहले ही समझौता हो चुका था।
      साम्राज्यवादी खुश हैं कि उन्होंने लीबिया पर कब्जा कर लिया है। वे इस माडल को सीरिया में भी अपनाना चाहते हैं। लेकिन उनकी खुशी वैसी ही है जैसे नवंबर 2001 में अफगानिस्तान में या मई 2003 में इराक में थी।
जल्दी ही यह खुशी मातम में बदल गई। लीबिया में भी कुछ ही महीनों मं साम्राज्यवादियों को पता चल जायेगा कि अफगानिस्तान व इराक के बाद वे तीसरे दलदल में फंस चुके हैं। लीबिया की स्वतंत्र जनता अपनी इस गुलामी को कभी स्वीकार नहीं करेगी। विश्व भर की मेहनतकश जनता भी इसमें उसके साथ खड़ी होगी।

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