ग्रीस में सरकार की जनविरोधी कटौती नीतियों के खिलाफ दो दिनों की आम हड़ताल पूर्णतया सफल रही। 19-20 अक्टूबर को सभी सार्वजनिक कर्मचारियों की यह हड़ताल साम्राज्यवादी वित्तीय संस्थाओं के कर्जों की भरपाई के लिए ग्रीस सरकार के प्रयास के खिलाफ आयोजित की गयी थी। ठीक इन्हीं दिनों में ग्रीस संसद की बैठक होनी थी जिसमें सरकारी/सार्वजनिक कर्मचारियों की छंटनी, उनकी तनख्वाहों-सुविधाओं में कटौति तथा आम सरकारी राहत योजनाओं में कटौति का विधेयक पास होना था। यह सब इसलिए किया जाना था कि फ्रांसीसी-जर्मन बैंको सहित अन्य साम्राज्यवादी देशों के बैंको के कर्जो की अदायगी हो सके। ये कर्जे सरकारों ने खुद बैंकों और वित्तीय सस्ंथाओं को बचाने के लिए लिए थे। इन दो दिनों की आम हड़ताल में पुलिस से जबर्दस्त भिड़न्त हुई। सैकड़ो लोग घायल हुए। लेकिन पूर्ण हड़ताल के बाद भी वित्तीय पूंजी की सरकार के द्वारा पेश विधेयक को वित्तीय पूंजीपतियों संसद ने मंजूरी दे दी। सरकार और संसद के दस निर्णय से पूंजीपति वर्ग तथा मजदूर वर्ग के बीच और बड़ी भिड़न्त का मैदान तैयार हो गया है।
ग्रीस में इस दो दिन की आम हड़ताजल के पहले 15 अक्टूबर को दुनियाभर में ‘अकुपाई वाल स्टरीट’ आंदोलन के समर्थन में और पूंजीपति वर्ग की निजिकरण-उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। पूंजीवादी प्रचार माध्यमों को खबर देनी पड़ी कि करीब 80 देशों के एक हजार के आस-पास शहरों में ये विरोध प्रदर्शन हुए। सबसे बड़ा प्रदर्शन स्पेन की राजधानी मैडिरिट में हुआ पुएर्ता डी सोल (सूर्यद्वार ) चौक में करीब पांच लाख लोगों ने प्रदर्शन किया। इसी तरह बार्सिलोना में करीब ढाई लाख लोग प्रदर्शन के लिए जमा हुए। यह ध्यान रखने की बात है कि स्पेन ही वह देश है जहां साम्राज्यवादी देशों में सबसे पहले M15 नाम से 15 मई को इस तरह के विरोध प्रदर्शन और चोक में जमावड़े शुरु हुए। इस बार 15 अक्टूबर को भी एक बार फिर स्पेन के नौजवानों और मजदूरों ने बाजी मारी।
संकटग्रस्त पुर्तगाल और इटली में भी 15 अक्टूबर को बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए।
सट्टेबाज वित्तीय पूंजी के खिलाफ ‘अकुपाई वाल स्ट्रीट’ के नाम से 17 सितंबर को शुरु हुआ यह आंदोलन लगातार व्यापक होता जा रहा है। इसने अमेरिकी साम्राज्यवादियों को मजबूर किया है कि वे सट्टेबाज वित्त पूंजी की कारगगुजारियों पर बात करने के लिए मजबूर हों। मजदूर वर्ग की गिरती हालत,अमीरी-गरीबी के बीच बढ़ती खाई,साम्राज्यवादी कब्जे की बढ़ती कार्यवाहियां इत्यादि जिन मुददो पर साम्राज्यवादियों ने चुप्पी साध रखी थी अब उन पर बात करने के लिए उन्हें मजबूर होना पड़ रहा है।
हांलाकि अमेरिकी साम्राज्यवादियों का डेमोक्रेटिक पार्टी वाला धड़ा इस आदोलन को अपने पक्ष में इस्तेमाल करने की भरपूर कोशिश कर रहा है, पर आंदोलन के विस्तार से वह ऐसा कर पाने में नाकामयाब रहेगा। इस आंदोलन की ताकत बड़ी मात्रा में इसमें मजदूरों की भागीदारी है। मजदूरा वर्ग को इस आंदोलन को और सचेत वर्गीय धार देनी होगी।
इस बीच चिली में छात्रो का आंदोलन भी थमने के बदले और आगे बढ़ रहा है। वहां छात्रो न संसद भवन पर कब्जा कर अपने बुलंद हौसलो का पुरजोर तरीके से इजहार किया है। वहां भी छात्रो द्वारा दो दिनों की आम हड़ताल घोषित की गयी है जिसे मजदूरों का पूरा समर्थन प्राप्त है।
वक्त है आग बढ़ने का। आगे बढ़ो!
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