Sunday, October 9, 2011

बहुत होते हैं दस साल !

    अफगानिस्तान पर अमेरिकी साम्राज्यवादियों के हमले के इस अक्टूबर में दस साल हो चुके हैं। इस हमले का मकसद अफगानिस्तान पर भू-राजनीतिक वजहों से कब्जा करना था और अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने यह कब्जा कर लिया। इसके लिए बहाना बनाया गया अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की टि्वन टावर्स इमारतों पर हमले का। अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने इस हमले के लिए ओसामा बिन लादेन और उसके संगठन अल-कायदा को जिम्मेदार बताया जो तब अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के तहत शरण लिए हुए था। इमारतों पर हमला किसने किया यह अब भी विवाद का विषय है और इसके लिए गठित अमेरिकी आयोग के कई सदस्य अब अपनी ही रिपोर्ट पर प्रश्न चिन्ह लगा चुके हैं और कह चुके हैं कि जार्ज बुश प्रशासन का उद्देश्य सच्चाई जानने का नहीं बल्कि उसे दबाने का था। इन्हीं वजहों से दुनिया में ढेरों लोगों का मानना है कि इस हमले में वास्तव में अमेरिकी सरकार का ही हाथ था। ऐसे लोगों में एक तिहाई अमेरिकी भी हैं। 

    जो भी हो, अमेरिकी साम्राज्यवादियों का वास्तविक उद्देश्य तो अफगानिस्तान जैसे भू-राजनीतिक महत्व के देश पर कब्जा करना था और उन्होंने यह कर लिया। उन्होंने तो 11 सितंबर 2001 को ही शाम को तय कर लिया था कि इस बहाने का इस्तेमाल कर कई देशों पर कब्जा कर लेना है। इराक व लीबिया पर उन्होंने बाद में कब्जा कर लिया। सूडान को बांटकर उसके दक्षिणी हिस्से को अपने प्रभाव में ले लिया। सीरिया व इरान पर कब्जे में लगे हुए हैं। सोमालिया में उन्होंने भयंकर मारकाट मचा रखी है।
        यह है अमेरिकी साम्राज्यवादियों का 11 सिंतबर 2001 के बाद का दशक !लेकिन अफगानिस्तान पर कब्जे का अफगानी जनता ने बहादुरी से प्रतिरोध किया, उस जनता ने जिसने सिकंदर से लेकर सोवियत साम्राज्यवादियों तक सबको धूल चटा दी है। जल्दी ही पस्त अमेरिकी साम्राज्यवादियों को इस कब्जे को बनाए रखने के लिए नाटो की शरण लेनी पड़ी। बाद में तो उन्हें रूसी साम्राज्यवादियों से भी ताल-मेल बैठाना पड़ा। लेकिन तब भी अमेरिकी साम्राज्यवादियों को सफलता नहीं मिली और उनकी कठपुतली हामिद करज़ई विदेशी सैनिकों की सुरक्षा में अपने दड़बे में दुबका हुआ है।
      बराक ओबामा ने अमेरिकी राष्ट्रपति बनते ही अमेरिकी साम्राज्यवादियों की जार्ज बुश परियोजना को ही आगे बढ़ाया तथा वहां और ज्यादा सैनिक भेजकर नियंत्रण कायम करने की कोशिश की। यह कोशिश नाकामयाब हो चुकी है लेकिन साम्राज्यवादी एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। इस कब्जे पर उनका बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है। 
   अब इस कब्जे के खिलाफ अफगानी जनता और दुनिया की मजदूर मेहनतकश जनता के साथ स्वयं अमेरिकी मजदूर वर्ग बड़े पैमाने पर सड़क पर आ रहा है। इस अक्टूबर महीने में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के लिए महीनों से तैयारियां चल रही थीं। साम्राज्यवादी कब्जे के खिलाफ विरोध अमेरिकी साम्राज्यवादियों की घरेलू-नीतियों के विरोध से संबंद्ध हो गया है। यही होना भी चाहिए था। बड़े पैमाने पर खड़े हो गए "ओकुपई वाल स्ट्रीट" आंदोलन में वित्तीय अधिपतियों की निजीकरण-उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों और उसके तहत मजदूर वर्ग की बेतहाशा लूट के साथ दुनिया भर में अमेरिकी साम्रज्यवादियों की लूट व कब्जे की कार्रवाइयों का विरोध किया जा रहा है। यह बहुत अच्छी शुरुआत है।
        अमेरिकी मजदूर वर्ग और दुनिया भर की अन्य मजदूर मेहनतकश जनता के साथ भारत के मजदूर वर्ग को भी अफगानिस्तान पर अमेरिकी कब्जे की इस दसवीं बरसी पर अपना पुरजोर विरोध दर्ज करना चाहिए और साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष को नई उंचाई पर ले जाने के लिए पूरा जोर लाग देना चाहिए।

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