Wednesday, September 28, 2011

वशिगटन में तहरीर चौक का प्रयास

          अमेरिका के लोग अब बाकी दुनिया के साथ कदम से कदम मिला कर चलने का प्रयास कर रहे हैं। वहां 6 अक्टूबर से राजधानी वाशिंगटन में चौक पर तम्बू गाड़ने और तहरीर चौक की तरह जमने की योजना बनाई जा रही है। कुछ अन्य लोगों ने 17 सितंबर से ही न्यूयार्क के वालस्ट्रीट में अपना तम्बू गाड़ दिया है। 
          इस साल अक्टूबर में अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान पर हमले के दस साल हो जायेंगे। इन दस  सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने न केवल अफगानिस्तान को बल्कि इराक को भी तबाह कर दिया। इस समय वे लीबिया को तबाह करने की कोशिश में लगे हुये हैं।
         अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने यह पूरा दशक अमेरिकी लोगों को बचाने के नाम पर दुनिया भर में अपनी कब्जाकारी कार्यवाहियों में बिताया है। यदि वे और आगे नहीं जा सके तो इसका श्रेय अमेरिका सहित दुनिया भर की जनता के अमेरिकी साम्राज्यवादियों के खिलाफ तीखे प्रतिरोध को ही जाता है। 
         अमेरिकी साम्राज्यवादियों की इस दशक में (और उसके पहले के दो दशकों में) इन घ्रणित कार्यवाहियों का गंभीर नतीजा स्वयं अमेरिका की मजदूर मेहनतकश जनता को भुगतना पड़ा है। इसका बयान अभी जारी ताजा आकड़े करते है जिसके अनुसार हर छठा व्यक्ति भुखमरी की रेखा के नीचे है, पिछले दशक भर में आम आदमी की आय घटी है, गरीबी-अमीरी के बीच खाई बेहद बढ़ी है। वहां मजदूर वर्ग का जीवन स्तर तीन दशक पहले के स्तर से भी नीचे चला गया है। इस बीच 400 धनी अमेरिकी नीचे की पचास प्रतिशत आबादी की संपत्ति से ज्यादा के मालिक हैं।
        इतना ही नहीं, पिछले दशक भर में आतंकवाद से युद्ध के नाम पर अमेरिकी राज्य का दमन बहुत बढ़ गया है, नागरिक स्वतंत्रता सीमित हुयी है। दुनिया भर में कब्जे के लिए प्रयासरत अमेरिकी साम्राज्यवादी अपनी जनता को ही गुलाम बना रहे हैं। बीस लाख से ज्यादा लोगों को तो उन्होंने वास्तव में जेल में बन्द कर रखा है।
          ऐसे में यदि अमेरिका में मजदूर-मेहनतकश जनता अपने शासकों यानी अमेरिकी साम्राज्यवादियों के खिलाफ खड़े होने का प्रयास कर रही है तो यह पूरी दुनिया की जनता के लिए बेहद खुशी की बात है। वैसे फरवरी में विंसकोसिन प्रान्त के मजदूरों के विरोध प्रदर्शन से लेकर अन्य विरोध प्रदर्शनों तक यह पहले ही शुरू हो चुका है।
          वशिंगटन के फ्रीडम प्लाजा चौक में अमेरिका का तहरीरचौक कायम करने का यह प्रयास फिलहाल अमेरिकी साम्राज्यवादियों की दुनिया भर में युद्ध की कार्यवाहियों और उदारीकरण की नीतियों के खिलाफ लक्षित है। अपने आप में आगे का कदम होते हुये भी यह आग की स्थितियों में बेहद नाकाफी है। आगे की लड़ाई तो सीधे पूंजीवाद-साम्राज्यवाद के खिलाफ बनती है। इसमें भी शासक वर्गों की भयंकर हिंसा के सामने किसी भी कीमत पर केवल अहिंसा की बात करना और भी सीमा बांध देता है।
लेकिन  एक बार मजदूर वर्ग यदि व्यापक मात्रा में उठ खड़ा होना शुरू होगा तो ये सीमाएं आसानी से टूट जायंगी। तब वर्तमान विरोध प्रदर्शन के आयोजकों की सीमाएं व इच्छाएं आसानी से किनारे लग जायेंगी।
         मजदूर  वर्ग के क्रांतिकारीयों का इन विरोध प्रदर्शनों में यही कार्य बनता है   िकवे इन सीमाओं को तोड़ने में मजदूर वर्ग की मदद करें- विचार व संगठन दोनों के स्तर पर। आने वाले दिन बहुत संभावना पूर्ण हैं।

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