Thursday, September 29, 2011

फिलीस्तीनी राष्ट्र का प्रस्ताव

          इस महीने संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में फिलीस्तीनी प्राधिकरण के मुखिया महमूद अब्बास ने फिलीस्तीन को एक राष्ट्र के रूप् में मान्यता देने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया। प्रस्ताव के अनुसार 1967 में मौजूद सीमाओं के अनुसार फिलीस्तीन को एक राष्ट्र की मान्यता देकर उसे संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनाया जाय। 
         इस प्रस्ताव को पास होने के लिए आम सभा के दो तिहाई का बहुमत जरूरी है इसके बाद इसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी पास होना चाहिए जहां दो तिहाई बहुमत के साथ इसे अमेरिकी वीटो का भी सामना करना पड़ेगा।
         संयुक्त राष्ट्र संघ में फिलीस्तीन को एक राष्ट्र की मान्यता दिलाने की कार्रवाई महज प्रतीकात्मक महत्व रखती है। यदि यह प्रस्ताव पास भी हो जाता हे तब भी फिलीस्तीन की मुक्ति का मसला जरा भी हल नहीं होता। आज इस्राइल ने ज्यातातर फिलीस्तीन पर कब्जा कर रखा है और उसे वहां से हटाने के लिए संयुक्त राष्ट्र आम सभा के सारे प्रस्ताव बेअसर रहे हैं। यह इसलिए कि उसे अमेरिकी साम्राज्यवादियों का बरदहस्त प्राप्त है। इस प्रस्ताव के पास होने पर भी स्थिति जस की तस रहेगी। आखिर अफगानिस्तान, इराक और अब लीबिया जैसे मान्यता प्राप्त देशों पर तो साम्राज्यवादियों ने ही कब्जा कर रखा है।
        इस प्रस्ताव के आम सभा में पास होने पर सुरक्षा परिषद में अमेरिकी साम्राज्यवादी जरूर इसे वीटो करेंगे। वे  इस प्रतीकात्मक कार्रवाई को भी बर्दाश्त नहीं करेंगे। राष्ट्रपति बराक ओबामा इसमें पूरी बेशर्मी के साथ लगे हुए हैं ।
          संयुक्त राष्ट्र संघ में इस प्रस्ताव को कुछ धूर्त लोगों ने फिलीस्तीनी बसंत की संज्ञा देकर अरब विद्रोह के समान्तर रखने की चेष्टा की है। साम्राज्यवादियों के इन चाटुकारों से इतर सच्चाई यही है कि फिलीस्तीन की जनता के अपने राष्ट्र का सपना केवल उनके दीर्घकालिक संघर्ष से ही पूरा होगा। हां इस बीच यदि इस्राइल का मजदूर वर्ग आगे बढ़कर अपने यहां मजदूर राज कायम कर ले तब स्थिति एकदम ही बदल जायेगी। तब फिलीस्तीन राष्ट्र को अलग होने के अधिकार सहित एक संघीय देश का निर्माण हो सकता है जिसमें सभी राष्ट्रीयताओं को पूर्ण बराबरी हासिल हो।
           भारत का छुटभैया पूंजीपति वर्ग इस प्रस्ताव पर भी अपनी आड़ी-तिरछी चाल चल रहा है। एक ओर वह इस्राइल से प्रगाढ़ संबंध बना रहा है तो दूसरी ओर वह इस प्रस्ताव का समर्थन कर रहा है। अमेरिकी साम्राज्यवादियों से तो वह रणनीतिक साझेदारी कर ही रहा है। 
        भारत का मजदूर वर्ग पुरजोर तरीके से फिलीस्तीनी मुक्ति संघर्ष का समर्थन करता है और अपने इस्राइली भाइयों का आह्वान करता है कि वे अपने देशी शासकों द्वारा फिलीस्तीनी राष्ट्र के दमन के खिलाफ उठ खड़े हों। यदि इस्राइली शासक फिलीस्तीन को गुलाम बनाना जारी रखेंगे तो इस्राइली मजदूर मजदूर भी अपनी गुलामी की जंजीरों को नहीं तोड़ पायेंगे।

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