वर्तमान विश्व पूंजीवादी संकट ने तीन दशकों से चली आ रही उदारीकरण की नीतियों के खिलाफ पूरी दुनिया में जिन भांति -भांति के विस्फोटों को जन्म दिया है उनमें से एक प्रमुख चिली में भी है। चिली में पिछले दो-तीन महीनों से छात्र शिक्षा के क्षेत्र में उदारीकरण की नीतियों को समाप्त करने की मांग को लेकर सड़कों पर हैं। वहां पांच-छः बार लाखों के प्रदर्शन आयोजित हो चुके हैं, जिनमें पुलिस से हिंसक झड़पें हुई हैं। छात्रों के समर्थन में उनके मां-बाप भी सड़कों पर उतर आये हैं।
चिली वह देश है जहां सल्वादोर अलेन्दे की सरकार 1970 में चुनाव के जरिये सत्ता में आई थी। इस सरकार ने चिली के पूंजीपति वर्ग और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के खिलाफ जाते हुए मजदूर-किसानों के लिए कुछ करने का प्रयास किया था। इसी से बौखलाकर अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने चिली की सेना के अफसरों के साथ मिलकर तख्ता पलट करवा दिया। राष्ट्रपति अलेन्दे को उनके दफ्तर में गोली मार दी गई। उसके बाद हजारों लोगों का सेना ने कत्लेआम कर डाला (कोस्टा गोवराय ने अपनी फिल्म ‘मिसिंग’ में इसको तीक्ष्णता से प्रस्तुत किया है)। सेना का जनरल पिनोख्ते चिली का तानाशाह बनकर बैठ गया और साम्राज्यवादियों की मदद से 17 साल तक शासन करता रहा।
जनता के विरोध के कारण जब पिनोख्ते का शासन चिली में समाप्त भी हुआ तो कुछ नहीं बदला। उसके शासन में लागू हुई उदारीकरण की नीतियां जारी रहीं। वस्तुतः पिनोख्ते का चिली उन पहले देशों में था जहां मिल्टन फ्रीडमैन एण्ड कम्पनी की उदारीकरण की नीतियां लागू की गई थीं।
पिनोख्ते के बाद भी न केवल उदारीकरण की नीतियां जारी रहीं बल्कि उनमें बढ़ोत्तरी भी हुई। अपने को वामपंथी कहने वाले लोग भी जब वहां सत्ता में आये तो भी यही सब चलता रहा।
लेकिन अब दुनिया के बहुत सारे अन्य देशों की तरह चिली के लोगों के सब्र का बांध टूट गया है। आर्थिक संकट ने आग में घी का काम किया है और छात्रों ने पहलकदमी ली है।
उदारीकरण की नीतियों को समेटने की मांग को लेकर छात्रों और उनके अभिभावकों का सड़कों पर उतरना तथा पुलिस से उनकी हिंसक झड़पें इस बात का संकेत हैं कि चिली की मजदूर-मेहनतकश जनता अब यथास्थिति को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। वह परिवर्तन चाहती है।
लेकिन शासक वर्ग यह चाल चलने की कोशिश करेगा कि विरोध को कुचल पाने में असफल रहने के बाद वह कुछ सुधार के कदम उठाकर लोगों को शान्त करने का प्रयास करे। ऐसे में आंदोलन को बचाने और आगे बढ़ाने के लिए जरूरी होगा कि सचेत क्रांतिकारी तत्व समूची पूंजीवादी व्यवस्था को ही उखाड़ फेंकने की जरूरत को पूरजोर तरीके से सामने रखें।
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