दिल्ली उच्च न्यायालय के सामने बम विस्फोट के बाद एक बार फिर भारत का शासक वर्ग मुस्लिम विरोधी उन्मादी माहौल तैयार करने का प्रयास कर रहा है। इस बात को किनारे रखकर कि इस समय बहुत सारी शक्तियां समाज में कार्यरत्त हैं, जिनके लिए इस तरह का विस्फोट फायदेमन्द है और इसीलिए जो इसमें शामिल हो सकती हैं, समस्त पूंजीवादी प्रचारतंत्र, संघ परिवार और कांग्रेसी सरकार तुरन्त इस नतीजे पर पहुंच चुके हैं कि यह इस्लामी आतंकवादियों का काम है। सच्चाई यह है कि अमेरिकी साम्राज्यवादी, पाकिस्तानी शासक, इस्लामी जेहादी, संघ परिवार और यहां तक की भारत की सरकार खुद इसमें शामिल हो सकती हैं। इसमें से कोई भी देश के आम लोगों के कत्ल का गुनाहगार हो सकता है।
इन विस्फोटों का फायदा उठाकर एक बार फिर जोर-शोर से आतंकवाद से सख्ती से निपटने, सख्त कानून बनाने इत्यादि की बातें की जा रही हैं। एक बार फिर बात की जा रही है कि अपनी सुरक्षा की खातिर नागरिकों को अपनी कुछ व्यक्तिगत स्वतंत्रता का बलिदान करना पड़ेगा।
अपनी घृणित करतूतों के चलते शासक स्वयं अपनी सुरक्षा के बंदी हो चुके हैं। वे दो-चार या दस-बीस बंदूकों के साये में ही चल पाते हैं। इस स्थिति को बदलने के बदले वे समस्त जनता पर पहरा बिठा देना चाहते हैं। इससे आतंकवाद खत्म हो या न हो, वे जरूर चाहते हैं कि देश के हर नागरिक की हर गतिविधि को वे अपने नियंत्रण में ले लें। अपने खिलाफ विद्रोह को रोकने के लिए यह जरूरी है।
जो लोग भ्रष्टाचार जैसे आर्थिक अपराध का समाधान सख्त से सख्त कानून में देखते हैं वे तो आतंकवाद रोकने के लिए और सख्त कानून के लिए आसानी से राजी हो जायेंगे । शासक वर्ग अपनी चालों में सफल है। लेकिन इस तरह की छोटी-मोटी चालों में सफलता ही यह निश्चित करती है कि भविष्य की बड़ी लड़ाई में उसकी पराजय पक्की होगी।
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