लीबिया में साम्राज्यवदियों की चाल कामयाब हो गयी है, वे सफल हो गये हैं। उन्होंने लीबिया पर कब्जा कर लिया हैं। राजधानी त्रिपोली पर इनके भाड़े के टट्ओं के कब्जे के बाद अब गद्दाफी की सत्ता एक तरह से समाप्त हो गयी है। अब गद्दाफी को निर्वासन में जिल्लत या शहादत दोनों में से एक चुनना होगा। देखना यह होगा कि क्या व सद्दाम हुसैन जितनी वीरता का प्रदर्शन करतें हैं या मिलोसेविक की तरह साम्राज्यवादियों के पिंजड़े में खड़े हो जाते हैं (तथाकथित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय)
लीबिया के तथाकथित विद्रोही वास्तव में साम्राज्यवादियों के एजेंट हैं। वे अफगानिस्तान की हामिद करजई की श्रेणी में आते हैं। यदि साम्राज्यवादियों ने उन्हें हथियार और अन्य साजो सामान से लैस नहीं किया होता, यदि उन्होंने लगातार पांच महीनों तक लीबिया पर भयंकर गोलाबारी कर उसे तबाह नहीं किया होता तो ये तथाकथित विद्रोही एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाते वास्तव में मार्च के मध्य में इसकी हार और संभावित विनाश के मद्देनजर ही इन्हें बचाने और लीबिया पर कब्जा करने के उद्देश्य से साम्राज्यवादियों ने इस पर आनन-फानन में हमला कर दिया था। इसके लिए उन्होंने पूरे झूठ-फरेब से संयुक्त राष्ट्र परिषद के प्रस्ताव संख्या 1973 का इस्तेमाल किया।
लीबिया पर कब्जे के साथ ही अब साम्राज्यवादी अरब विद्रोहों के खिलाफ एक बड़ी कामयाबी हासिल करने में सफल हो गये हैं। यह इन विद्रोहो के संदर्भ में एक निर्णायक मोड़ भी हो सकता है।
इस साल की जनवरी-फरवरी में ट्यूनिशा व मिश्र की जनता के विद्रोह की शुरूआती सफलता के बाद (जिसका एक निशाना साम्राज्यवादी भी थे) जब अन्य अरब देशों की तरह लीबिया में जन विद्रोह फूट पड़ा तो साम्राज्यवादियों ने तुरंत इसका फायदा उठाने की रणनीति बनाई। उन्होंने अपने पिट्ठुओं से बेंगजी शहर में सशत्र विद्रोह शुरू करवा दिया और फिर मानव संहार का आरोप लगाकर लीबिया पर हमला बोल दिया । उनके उद्देश्य इसमें अरब विद्रोहो को रास्ते से भटकाना, इन विद्रोहो का फायदा उठाकर अपने समीकरण बैठाना, तेल निर्यातक देश लीबिया पर कब्जा करना जिसका तानाशाह शासक गद्दाफी पालतू बनकर भी पालतू नहीं बना था, रूसी साम्राज्यवादियों व चीनी शासकों को लीबिया व अफ्रीका से खदेड़ना, इत्यादि सभी थे। इनके एक तीर से कई निशाने थे जिसे वे लीबिया पर कब्जे के बाद अंतिम रूप से हासिल करने का प्रयास करेंगे ।
इस साल की जनवरी-फरवरी में ट्यूनिशा व मिश्र की जनता के विद्रोह की शुरूआती सफलता के बाद (जिसका एक निशाना साम्राज्यवादी भी थे) जब अन्य अरब देशों की तरह लीबिया में जन विद्रोह फूट पड़ा तो साम्राज्यवादियों ने तुरंत इसका फायदा उठाने की रणनीति बनाई। उन्होंने अपने पिट्ठुओं से बेंगजी शहर में सशत्र विद्रोह शुरू करवा दिया और फिर मानव संहार का आरोप लगाकर लीबिया पर हमला बोल दिया । उनके उद्देश्य इसमें अरब विद्रोहो को रास्ते से भटकाना, इन विद्रोहो का फायदा उठाकर अपने समीकरण बैठाना, तेल निर्यातक देश लीबिया पर कब्जा करना जिसका तानाशाह शासक गद्दाफी पालतू बनकर भी पालतू नहीं बना था, रूसी साम्राज्यवादियों व चीनी शासकों को लीबिया व अफ्रीका से खदेड़ना, इत्यादि सभी थे। इनके एक तीर से कई निशाने थे जिसे वे लीबिया पर कब्जे के बाद अंतिम रूप से हासिल करने का प्रयास करेंगे ।
लीबिया में सफलता के बाद वे यही रणनीति सीरिया में अपनाना चाहेंगे। वैसे वे तीन चार महींनो से जी- तोड़ प्रयास भी कर रहे हैं। फिलहाल रूसी साम्राज्यवादी व चीनी शासक उनकी राह का रोड़ा बने हुए हैं।
अब एक और साम्राज्यवादियों द्वारा ढायी गयी तबाही से गुजरेगा। लीबिया का भी हाल इराक व अफगानिस्तान जैसा होगा। लेकिन वहां की तरह यहां भी लीबिया की जनता साम्राज्यवादियों को नाको चने चबवा देगी। आखिर लीबिया उमर मुख्तार का देश है। लीबिया पर कब्जे की कामयाबी का क्षण साम्राज्यवादियों के लिए भंयकर मुसीबतों की शुरुआत भी है।
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