Wednesday, July 27, 2011

ह्पार्ट मुर्डोक और पूंजीवादी लोकतंत्र

           पूंजीवादी लोकतंत्र के बेशर्म से बेशर्म समर्थको को भी हर्पोट मुर्डोक के मामले में उस सच्चाई को स्वीकार करना जिसे ढकने के लिए व दिन-रात एक किये रहते हैं। वह सच्चाई यह है कि पूंजीवादी प्रचारतंत्र की तह में भयानक सड़ांध है।
           आज यह सामान्य सी सच्चाई है कि पूंजीवादी प्रचार तंत्र ( पत्र, पत्रिकाएं, टी.वी.) अर्थव्यवस्था के अन्य हिस्सो की तरह कुछ एकाधिकारी पूंजीपतियों के हाथ में हैं।
            ऊपरी तौर पर स्वतंत्र व निष्पक्ष प्रचार माध्यमों का ढोंग करने वाले ये एकाधिकारी ढंग से कुछ थोड़े से बहुत बड़े पूंजीपतियों के हाथो में सकेन्द्रित हैं और उनके लिए अरबों-खरबों का मुनाफा पैदा करते हैं। अपने मालिकों के लिए अरबों-खरबों का मुनाफा पैदा करते हुए ये साम्राज्यवादी पूंजीपति वर्ग के आम हितों के हिसाब से जनमानस में प्रचार कार्य करते हैं। ये स्वतंत्र और निष्पक्ष एकदम नहीं हैं।
             हर्पोट मुर्डोक भी ऐसा ही एकाधिकारी पूंजीपति है। उसकी जीवन कथा और आज की हकीकत बहुत कुछ प्रसिद्ध फिल्म ‘सिटिजेन केन’के पात्र से मिलती है। आस्ट्रेलिया के पूंजीवादी प्रचार तंत्र पर कब्जा करने के बाद इसने यूरोप और अमरीका के प्रचार तंत्रों पर कब्जा करना शुरु किया। इंगलैड में तो वह इस कदर शक्तिशाली हो गया कि वहां अपने को ‘किंगमेकर’ मानने लगा। अब ‘न्यूज आव दी वर्ल्ड’ के  ’सनसनीखेज घपले ने यह उजागार कर दिया है कि यूरोप-अमरीका का यह एकाधिकारी प्रचारतंत्र भी अपने सार तत्व में वही है जो भारत में वीन प्रत्रिकारिता के नाम से विख्यात है। हमारे देश में यह आम जानकारी की बात है कि बड़े बड़े अखबार के स्थानीय संवाददाता भी स्थानीय पुलिस, पूंजीवादी नेताओं, और अपराधी गिरोहो के साथ एक खास तरह के सांठ-गांठ में रहते हैं। स्थानीय स्तर के छोटे पूंजीवादी अखबारों का धन्धा ही यही होता है। देश के पैमाने पर बड़े अखबारों के मालिक संवाददाता राजनीति का खेल खेलते रहते हैं। नीरा राडिया टेप ने इस सबको उजागार किया था।
           ‘न्यूज आव दी वर्ल्ड’ के कारकून,  ह्पार्ट मुर्डोक और और उनके सहयोगी इंगलैंड में यही सब कर रहे थे। इससे सब वाकिफ थे क्योंकि क्योंकि यह पूंजीवादी व्यवस्था का आम रूप है लेकिन अब जबकि कुछ काले कारनामे सनसनीखेज ढंग से सामने आ गये हैं तब सभी यह दिखावा कर रहे हैं मानों कुछ अनहोनी हो गयी हो। ह्पार्ट मुर्डोक ब्रिटिश संसद और ब्रिटिश जनता से माफी मांग रहा है, डेविड कैमरून एण्ड कम्पनी अपना दामन बचा रही है और समूचा प्रचारतंत्र इसे अपवाद बताकर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश कर रहा है।  
           मजदूर  वर्ग अपने ऐतिहासिक अनुभव से जानता है कि पूंजीवादी प्रचारतंत्र न पहले इससे भिन्न था और न आगे इससे भिन्न होगां हां पतनशील पूंजीवाद के और ज्यादा पतित हो जाने के साथ यह भी और ज्यादा घृणित होता जायेगा।

No comments:

Post a Comment