22 जुलाई को नार्वे में आन्द्रे ब्रीविक द्वारा 24 लोगों की हत्या ने यह तीखे ढंग से उजागार कर दिया कि यूरोप इस समय एक गंभीर संकट से गुजर रहा है। इस धुर दक्षिणपंथी व्यक्ति ने, जिसे बचाने के लिए अब उसके वकील उसे पागल साबित करने की कोशिाश कर रहे हैं, यूरेाप को इस्लाम ओर सांस्कृतिक मार्क्सवाद से मुक्त कराने के लिए उन बेगुनाह लोगों की हत्या कर दी जो खुद यूरोप के गंभीर संकट के शिकार हैं। मारे जाने वालों में ज्यादातर युवा इसाई थे।
ब्रीविक ने इस घटना को अंजाम देने के पहले इंटरनेट पर अपना 1500 पृष्ठो का घोषणा पत्र जारी किया था।
यह कुछ इसी तरह का घोषणा पत्र था जैसा यूरोप के विभिन्न देशों में विदेशियों, खासकर मुसलमानों के खिलाफ घृणा फैलाने वाले विभिन्न संगठनों और पार्टियों का है जो यूरोप में कुकुरमुत्तो की तरह पैदा हो रहे हैं। यह घोष्णापत्र कई मायने में हमारे देश के संघ परिवार के घोषणा पत्र जैसा है। वस्तुतः इस घोषणा पत्र में भारत और हिंदुत्व के बारे में करीब एक सौ पृष्ठ हैं और इसमें संघ परिवार द्वारा मुसलमानों के खिलाफ अभियान की प्रंशसा की गयी है। इस तरह ब्रीविक यूरोप में विदेशी अप्रवासियों के खिलाफ अभियान की चरण परिणति मात्र है। साथ ही यह इस्लामी जिहादियों की नकल करते हुए उन्हीं के तौर- तरीकों को दोहराने की कोशिश है, हालांकि इसके ज्यादातर शिकार नार्वे के इसाई हैं।
नार्वे ओर यूरोप का पूंजीपति वर्ग बहुत आसानी से इसे विक्षिप्त व्यक्ति की कार्यवाही घोषित कर अपने को दोषमुक्त दिखाने की कोशिश कर सकता है। वह इसे एक अपवाद घटना भी बता सकता है। या फिर उसका एक हिस्सा विदेशी प्रवासियों, खासकर मुसलमोनों को इसके लिए प्रकारान्तर से दोषी ठहराते हुए विदेशियों के लिए अपने दरवाजे बंद करने की वकालत भी कर सकता है।
परन्तु सच्चाई यही है कि इस सबके लिए केवल और केवल यूरोप का साम्राज्यवादी पूंजीपति वर्ग जिम्मेदार हैं। यूरोप में और पूरी दुनिया के पैमाने पर इसने जो कुछ किया है वही पलटकर अब इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहा है।
यूरोप का पूंजीवाद एक पतनशील सभ्यता है। यह पतनशील सभ्यता न केवल अपनी जीवंतता खो चुकी है बल्कि मुनाफे की हवस में यूरोपीय संघ जैसी परियोजना को परवान चढा रही है। यूरोपीय एकीकरण यूरोप के मजदूर वर्ग के तीखे विरोध के बावजूद वहां के शासक वर्ग द्वारा आगे बढाया जा रहा है क्योंकि यह यूरोप के पूंजीपति वर्ग के लिए फायदेमंद है। पिछले तीन दशकों की निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों ने पहले ही मजदूर वर्ग पर कहर ढा रखा है।
इन सबमें रही सही कसर आर्थिक संकट ने पूरी कर दी जो उपरोक्त नीतियों के कारण बेहद विस्फोटक रूप में सामने आया। उपर से तुर्रा यह कि गंभीर संकट का सामना होने पर यूरोप का पूंजीपति वर्ग पीछे नहीं हटा बल्कि उसने और आगे बढ़कर इस संकट का सारा बोझ मजदूर वर्ग पर डालने की कोशिश की और एक हद तक इसमें कामयाब रहा । मजदूर वर्ग त्राहि-त्राहि कर उठा।
इस दौरान यूरोपीय पूंजीपति वर्ग के एक हिस्से ने मजदूर वर्ग को बांटने और उसके असंतोष को दूसरी दिशा में मोड़ने के लिए जान-बूझकर विदेशी अप्रवासियों और खासकर औा खासकर मुसलमानों का हौव्वा खड़ा किया। पूंजीपति वर्ग के दूसरे हिस्सों ने इसे मौन समर्थन दिया। इन्हीं सबका परिणाम है ब्रीविक।
ऐसा नहीं है कि यूरोप का अधिकांश मजदूर वर्ग या युवा दिग्भ्रमित है। बात ठीक इसकी उल्टी हैं। ठीक इसी समय मजदूर और युवा सड़कों पर डेला डाल रहे हैं। वे यूरोपीय क्रांति की बात कर रहे हैं। वे बैंकरो और उनके दलाल पूंजीवदी नेताओं के निशाना बना रहे हैं। वे विदेश प्रवासी मजदूरों समेत सारे मजदूरों की एकता की बात कर रहे हैं।
यूरोप के इन मजदूरों और युवाओं की बातें यूरोप के साम्राज्यवादी पूंजीपतियों के लिए बहुत परेशानी के बातें हैं। वे इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। वे यदि सीधे तरीके से इनसे नहीं निपट सकते तो यही चाहेंगे कि आन्द्रे ब्रीविक जैसे लोग सैकड़ों हजारों की संख्या में पैदा हों। आन्द्रे ब्रीविक जैसे लोग यूरोप के पतनशील साम्राज्यवादी पूंजीपति वर्ग के लिए बहुत फायदेमंद हैं। आखिर यह यूरोप का पूंजीपति वर्ग ही था जिसने हिटलर और मुसोलिनी का सत्तारूढ़ कराया और उसका इस्तेमाल किया। पतनशील पूंजीपति वर्ग के चरित्र में तब से कोई बदलाव नहीं आया है। वह आज भी मुनाफा और सत्ता बचाने लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
उठ खड़े होते मजदूर वर्ग को इस खतरे को ज्यादा स्पष्टता से समझना होगा और आगे बढ़कर उससे मोर्चा लेना होगा।
Islam is new target of fascists, there is no difference between attack of Andre Brivick and genocide under the leadership of U.S. Imperialism in name of war against terror. The expenditure occurred on this so called war against terror has surpassed the cost of second world war. When capitalism comes under crisis , it conspire to come under garb of Fascism. But history do not repeat itself always. Worker's of the world will turn the tide.
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