Saturday, July 9, 2011

मिश्र में विद्रोही जनता का अगला कदम

           मिश्र में ‘‘क्रांति खतरे में’’ और दूसरी क्रांति के नारों के साथ एक बार फिर लाखों की संख्या में जनता सड़कों पर उतर पड़ी है। इसकी शुरुआत 27 मई को हुई थी जब ‘‘गुस्से का दूसरा दिन’’ आयोजित किया गया। अब 8 जुलाई को मुबारक के गद्दी छोड़ने के बाद सबसे बड़े विरोध प्रदर्शन का आयोजन हुआ।
             12 फरवरी को होस्नी मुबारक के गद्दी छोड़ने के बाद मिश्र की विद्रोही जनता को लगा था कि उसने क्रांति कर ली है। तीस साल से काबिज तानाशाह को सत्ता से भगा देना मिश्र की जनता के लिए शानदार उपलब्धि थी। उसके बाद भी उसने समय-समय पर सड़कों पर उतरकर कुछ और चीजें हासिल कीं। मसलन आंतरिक सुरक्षा मंत्रालय को भंग किया जाना,मुबारक के बेटों की गिरफ्तारी और मुबारक सहित उनपर मुकदमा चलाने की बात इत्यादि।

           लेकिन यह स्पष्ट ही था कि इन शानदार जीतों के बावजूद मिश्र में क्रांति नहीं हुई थी। वास्तव में वही पुराना जनतंत्र कायम था, बस ऊपर के कुछ लोग बदल गए थे। सत्ता मुबारक की ही पाली-पोसी सेना और जनरलों के हाथ में थी। वे किसी भी चीज में परिवर्तन नहीं चाहते। यही नहीं, कुछ समय बाद उन्होंने विद्रोही जनता को आदेश दिया कि वह घरों में लौट जाए और शांति बहाल करे। मिश्र का शासक पूंजीपति वर्ग,साम्राज्यवादी और मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे संगठन यही चाहते हैं।
             लेकिन मिश्र के सैनिक शासकों को यह सब पसंद नहीं था। उन्होंने मजदूरों के आंदोलन को कुचलना शुरु कर दिया। हड़तालों, जुलूस-प्रदर्शनों पर रोक लगाने की कोशिश की। विरोध-प्रदर्शनों के दौरान लोगों को मारा-पीटा और गिरफ्तार किया। यहां यह गौरतलब है कि मिश्र के विद्रोह में 12 फरवरी तक करीब एक हजार लोग शहीद हुए थे और छः हजार से ज्यादा घायल। कुल करीब सात हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया।
            सितंबर में चुनाव करवाने की बात करते हुए सैनिक शासकों का दमन जब काफी बढ़ गया तो विद्रोही जनता का सब्र का बांध टूट गया। 27 मई को ‘‘गुस्से का दूसरा दिन’’ आयोजन किया गया जो मुस्लिम ब्रदरहुड और सैनिक शासकों के विरोध के बावजूद सफल रहा। लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर उतरे। उन्होंने ‘‘दूसरी क्रांति’’ की बातें की क्योंकि ‘‘पहली क्रांति’’ सैनिक शासकों ने हड़प ली थी।
              उसके बाद तो जैसे ज्वार आ गया हो। आए दिन जनता को सुरक्षा बलों से झड़पें होने लगीं। जब स्वेज शहर में 7 पुलिस वालों को अदालत ने विद्रोही जनों की हत्या के आरोप से बरी कर दिया तब किसी भ्रम की गुंजाइश नहीं बची। उपर से यह कि मुबारक शासन के तीन मंत्रियों पर भी मुकदमा नहीं बनने की घोषणा सैनिक प्रशासन ने कर दी। इसके ठीक उलट विद्रोही जनता में से नेतृत्व कारी लोगों में से लोगों को पकड़कर उनपर मुकदमा चलाया गया।
             इन सबके के चलते जून अंत से लेकर जुलाई के पहले सप्ताह में जनता और सेना में झड़पें हुईं। इसमें एक हजार से ज्यादा लोग घयाल हुए। विद्रोही जनता के लिए यह सब बर्दाश्त से बाहर होने लगा। वह 8 जुलाई को लाखों की संख्या में सड़कों पर उतर पड़ी। इस बार मुस्लिम ब्रदरहुड की भी विरोध करने की हिम्मत नहीं पड़ी। शुरुआती विरोध के बाद अंत में वह भी विरोध प्रदर्शन में उतरने को मजबूर हुई।
            मिश्र के पूंजीपति शासक और साम्राज्यवादी चाहते हैं कि सितंबर में चुनाव करवा कर मुस्लिम ब्रदरहुड या ऐसे लोगों के हाथों में सत्ता सौंप दी जाए और जिससे सब कुछ पहले जैसा चलता रहे। लेकिन विद्रोही जनता को यह मंजूर नहीं। वह पुराने शासन तंत्र की समाप्ति, उसके मुख्य कर्ता-धर्ताओं को सजा तथा अपने जीवन में बेहतरी चाहती है। इस विद्रोही जनता को वायदों से नहीं फुसलाया जा सकता यह उसने पिछले एक-डेढ़ महीनों में, खासकर 8 जुलाई को बखूबी प्रदर्शित कर दिया है।

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