Tuesday, July 5, 2011

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की नयी प्रबंध निदेशक

            फ्रांस की पूर्व वित्त मंत्री क्रिस्टीना लगार्ड ने 5 जुलाई से अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रबंधन निदेशक का पद संभाल लिया। उन्होंने डोमिनीक स्ट्रास कान के इस्तीफे के बाद यह पद हासिल किया। कान को अपने ऊपर लगे बलात्कार का आरोप लगने के बाद इस्तीफा देना पड़ा था।
           वर्तमान आर्थिक संकट के शुरू होने के पहले से ही कहा जा रहा था कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का पुर्नगठन कयिा    जाना चाहिए। इसमें कोष के फैसले में तीसरे देशों की ज्यादा भागीदारी बढ़ाने के साथ उसके प्रबंध निदेशक के पद पर किसी गैर यूरोपीय के चुनाव की भी बात थी। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के गठन के समय से ही 16 प्रतिशत मतों के साथ संयुक्त राज अमेरिका को वीटो हासिल है तो प्रबंध यूरोपीय देशों के लिए सुरक्षित रहा है। विश्व बैंक का अध्यक्ष हमेशा अमेरिका का होता रहा है। वर्तमान संकट गहराने पर संस्थानों के पुर्नगठन की बात और तेज हो गई।
           इसलिए जब डोमिनीक स्ट्रास कान ने इस्तीफे दिया तो तीसरी दुनिया के कई देशों को लगने लगा कि यह पद उन्हें हासिल हो सकता है। इसमें भारत भी शामिल था। भारत के सबसे ज्यादा साम्राज्यवाद परस्त लोगों में से एक मोन्टेक संहि अहलुवालिया का नाम इस पद के लिए आने लगा। लेकिन साम्राज्यवादियों के तलवे चाटने को आतुर इस शख्स को शुरू में ही दौर से बाहर हो जाना पड़ा। इसके बदले मेक्सिको के केन्द्रीय बैंक के अध्यक्ष आगिस्टीन क्रिस्टिनों इस पद के लिए दौड़ में सामने आये।
पर साम्राज्यवादी इस महत्वपूर्ण पद को यूं ही इस तरह अपने हाथ से नहीं जाने दे सकते थे। जल्दी ही यह स्पष्ट हो गया जब भारत, चीन इत्यादि तीसरी दुनिया के देश एक के बाद एक क्रिस्टीन के पक्ष में बोलने लगे। अंत में वही हुआ जो होना था। डोमिनीक स्ट्रास कान के बाद दूसरे फ्रांसीसी व्यक्ति यानी क्रिस्टीन लगार्ड की झोली में यह पद चला गया। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पुर्नगठन की सारी बातें फर्जी साबत हुयीं।
           साम्राज्यवादी पूंजीवादी प्रचारक अब यह प्रचार करने में लगे हुए हैं कि इस पद एक महिला का आरुढ़ होना एक महत्वपूर्ण घटना है। लेकिन इससे बस इतना ही होगा कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के भीतर या बाहर की औरत को नारी-उत्पीड़न का शिकार नहीं होना पड़ेगा। लेकिन दुनिया भर के कमजोर देशों और साम्राज्यवादी देशों के मजदूरों और मेहनतकशों को इससे क्या राहत मिलेगी। स्पष्टतः उन्हें कोई राहत नहीं मिलेगी। उन्हें पहले की तरह ही साम्राज्यवादी पूंजी के हति में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के खूनी पंजों का शिकार होना पड़ेगा।
          क्रिस्टीन लगार्ड साम्राज्यवादी पूंजी की पसंदीदा हैं, खासकर वे अमेरिकी वित्तीय अधिपतियों की पसंदीदा हैं। उन्होंने फ्रांस की वित्त मंत्री रहते हुए स्पेन, ग्रीस और आयरलैण्ड को चूसने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। ठीक इसी समय ग्रीस पर जो शर्तें थोपी जा रही हैं उसमें यूरोपीय संघ (मूलतः फ्रांसीसी व जर्मन वित्तीय अधिपतियों) की बड़ी भूमिका है। इसमें क्रिस्टीन लगार्ड की प्रत्यक्ष भूमिका है। अब बस इतना होगा कि ग्रीस की मजदूर-मेहनतकश जनता के गले में यह फंदा वे फ्रांस की वित्त मंत्री के बदले अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रबंध निेदशक के तौर पर कसेंगी। तब उनके खूनी पंजे की ताकत और ज्यादा बढ़ जायेगी।
लेकिन साथ ही यह भी सच है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी शैतानी संस्थाओं तथा क्रिस्टीना लगार्ड जैसे रक्त पिपाषुओं के खिलाफ मजदूर वर्ग की नफरत बेहिसाब बढ़ती जा रही है। इस समय ग्रीस, इटली, इंग्लैण्ड और फ्रांस में जो विशाल विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं वे इसे ही दर्शाते हैं। बहुत जल्दी ही क्रिस्टीना लगार्ड को व्यक्त्गित तौर पर इसका अनुभव होगा।

No comments:

Post a Comment