Tuesday, June 7, 2011

लोगों की जुबान पर वैश्विक क्रांति

स्पेन में विभिन्न शहरों  में चौक पर लोगों के जमावड़े के बाद यह लहर ग्रीस और  इटली तक जा पहुंची है। मई अंत में ग्रीस में इसकी शुरुआत हुई तो  इटली में जून में।
इसे होना ही था। ग्रीस की हालत स्पेन से ज्यादा ही खराब है। ग्रीस की सरकार पहले यूरोपीय केन्द्रीय बैंक की शरण में पहुंच चुकी है। और उनहोंने  यूनान की सरकार को निर्देश दिया है कि वह मजदूरों की तनख्वाहों और सुविधाओं में भारी  कटौती  करे। पूंजीपतियों की सरकार यह करने की ओर बढ़ चुकी है।

यूनान में पिछले तीन सालों में हर दूसरे-तीसरे महीने सरकार के खिलाफ एक दिवसीय आम हड़ताल का आयोजन किया जाता रहा है। पर इसके बावजूद सरकार और  पूंजीपति वर्ग मजदूरों  को और  भी ज्यादा चूसने की ओर  लगातार बढ़ती रहती है। अब तो  पानी सर से गुजरने लगा है।
यूनान में पहले शहरों के चौक पर केवल युवक ही जमे। शुरु में उनका रुख मौजूदा  ट्रेड यूनियनों और राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ था। इनके प्रति उनका आक्रोश स्वभाविक था। इन्होंने मजदूरों और  जनता को  छला ही है। अब मौजूदा ट्रेड यूनियनें भी इसी आन्दोलन में शामिल हो  रहीं हैं। स्पेन की तरह यहां भी प्रदर्शनकारियों की मांग असली जनतंत्र की है, ऐसे जनतंत्र की जो पूंजीपतियों का  नहीं बल्कि मजदूरों-मेहनतकशों का हो ।
इसी असली जनतंत्र की मांग को  लेकर अब इटली में भी युवक और मजदूर शहरों  के चौक पर जम रहे हैं। वे भी इतावली क्रांति की बात करते हुए ‘‘वैश्विक क्रांति’’ का हिस्सा बनने की बात कर रहे हैं। इन्हें भी स्पेन व ग्रीस की तरह पूंजीपति वर्ग की लूट इस ओर ढकेल रही है।
यह सुनना सचमुच सुखद है कि यूरोप के लोग  ‘‘वैश्विक क्रांति’’ की बात कर रहे हैं। और जब यह बात दुनिया की दो महान सभ्यताओं वाले देशों यूनान और रोम के लोग कर कर रहे हों तो  यह और  भी अहलाद्कारी हो जाता है।
अरब दुनिया में जन विद्रोह जब होस्नी  मुबारक और  अबीदीन बेन अली को सत्ता से से भगाने में कामयाब हो  गया तभी यह स्पष्ट गया था कि यदि विद्रोह  जारी रहता है तो यह दक्षिणी यूरोप के संकटग्रस्त देशों को  भी अपनी चपेट में ले सकता है। इन देशों  में स्थिति 2008 के गंभीर आर्थिक संकट से ही लगातार और  ज्यादा विस्फोटक होती  जा रही है। कोई  कारण नहीं था कि अरब जगत में जन विद्रोह  के लंबे समय तक जारी रहने पर इन देशों में भी यह ज्वाला न भड़क उठे।
मिश्र व ट्यूनिशिया में सत्ताधारी राष्ट्रपतियों   को  भगाने के बाद जन विद्रोह शांत नहीं हो गया। वह न केवल लीबिया, बहरीन, यमन, ओमान, सीरीया इत्यादि देशों में फैल गया बल्कि स्वयं मिश्र व ट्यूनिशिया में भी सत्ताधरियों लोगों को  इस ओर धकेलता रहा कि वे कुछ और सुधार करें। अभी 27 मई क¨ तहरीर चौक सहित समूचे मिश्र में दशियों लाख लोगों  ने प्रदर्शन किया और ‘‘क्रांति’’ को ‘‘दूसरे चरण’’ में ले जाने की बात की। यह सब तब जब वर्तमान सैनिक सरकार ने प्रदर्शनकारियों को धमकी दी थी और  मुस्लिम ब्रदरहुड ने विद्रोही जनता को  कम्युनिस्टों और धर्म  निर्पेक्षतावादियों  का हव्वा  दिखा कर डराने की क¨शिश की थी। मिश्र का मजदूर वर्ग अपने विद्रोह को  आगे ले जाने के लिए कृतसंकल्प है। अब जब दक्षिणी यूरोप के  देश भी जन विद्रोह की इस लहर में शामिल हो रहे हैं तो  इसका दायरा वास्तव में बहुत व्यापक हो जाता है। इसकी संभावनाएं बहुत बढ़ जाती हैं। ‘‘वैश्विक क्रांति’’ शब्द लोगों  की जुबान पर आना ही बहुत कुछ कह जाता है।
भारत समेत दुनिया भर के क्रांतिकारियों का यह गंभीर दायित्व बन जाता है कि वे जन विद्रोह  की इस लहर को  वास्तव में क्रांति तक पहुंचाने के लिए हर संभव प्रयास करें। वक्त बहुत अनुकूल है और यह दिनों -दिन और ज्यादा अनूकूल होता जा रहा है।

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