योग का समाज के अपेक्षाकृत निचले हिस्सों (निम्न मध्यम वर्ग और कस्बाई मध्यम वर्ग) में बड़े पैमाने का व्यवसाय करने वाले बाबा रामदेव अब भ्रष्टाचार मिटाने के लिए आधुनिक शेखचिल्ली की तरह दिल्ली के रामलीला मैदान में आ डटे हैं। उन्होंने काले घन को अपना मुख्य मुदद् बनाया हैं।
इसके अलवा भ्रम फैलाने और घोखा देने के लिए उन्होंने कुछ मांगे और जोड़ दी हैं। इसमें मजदूरों की मजदूरी के संबंध में भी एक मांग हैं। साथ ही देश का प्रधानमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा के तहत उन्होंने प्रधानमंत्री का सीधे चुनाव करवाने की मांग भी कर डाली है।
योग और साथ ही फर्जी आयुर्वेदिक दवाओं का व्यवसाय करने वाले इस मजमेबाज बाबा को अप्रैल में कुछ अन्य चतुर बाजीगरों (आरविन्द केजरीवाल, किरन बेदी और अन्ना हजारे) ने चतुराई से किनारे लगा दिया था। बाबा तब अपना अपमान बर्दाश्त नहीं कर पाये थे और मुश्किल से अपनी जुबान पर लगाम लगा पाये। तभी उन्होंने तय किया था कि इस आपमान का बदला लेना है और भ्रष्टाचार का मुद्दा हड़प लेने वाले बाजीगरों से इसे वापस हथियाना है। 4 जून से रामलीला मैदान में उनका सत्याग्रह इसी लिये आयोजित किया गया है।
भ्रष्टाचार और काले घन के खिलाफ मुहिम चलाने वाले इस मजमेबाज का यह सत्याग्रह भी भ्रष्टाचार और काले धन के बल पर ही आयोजित किया जा रहा है। इसनें दिल्ली में रामलीला मैदान भ्रष्टाचार के खिलाफ सत्याग्रह के लिए नहीं बल्कि 20 दिन का योग शिविर चलाने के नाम पर लिया है। वहां जो भव्य तम्बू लगाया गया है वह करोड़ो रुपयें की लागत का है। आंधी-पानी झेलने वाले इस तम्बू में कूलर - पंखे के साथ पानी की जो व्यवस्था है उसे इस देश के मजदूर और गरीब किसान अपने धरना - प्रदर्शनों में सोच भी नहीं सकते। काले धन के खिलाफ अभियान चलाने के लिए भारी मात्रा में काले धन बाबा रामदेव की झोली में ड़ाला जा रहा है।
मजमेबाज बाबा ने कुछ इस तरह की हवा फैला रखी है कि यदि सरकार काला धन हासिल कर ले तो देश में गरीबी दूर हो जायेगी, देश तेजी से तरक्की करने लगेगा।
हजारों करोड़ रुपयें के काले धन के मालिक बाबा रामदेव (इनकी अपनी स्वीकरोक्ती के अनुसार इनके ट्रस्ट के पास 1100 करोड़ रुपये की संपत्ति हैं जबकि अन्य लोग इसे दसियो हजार करोड़ बताते हैं) बखूबी जानते हैं कि काला धन देश का उतना ही विकास करता हैं जितना सफेद धन। इस विकास का मतलब हैं पूंजीपतियों की पूंजी में दिन-दूना रात चैगुना बढ़ोतरी जबकि मजदूरों की हालत का खराब होते जाना। काला धन उसी तरह मजदूरों का शोषण करता है जैसे सफेद धन। किसी उधम में लगे काले और सफेद धन द्वारा कमाये जाने वाले मुनाफे में कोई फर्क नही होता। यह हमेशा केवल और केवल मजदूरों के शोषण से आता हैं।
यदि सरकार काला धन हासिल करती हैं तो बस इतना ही होगा कि वह उसे भांति-भांति के प्रोत्साहन के नाम पर पूंजीपति वर्ग को वापस लौटा देगी। यह धन फिर उसी पूंजीपति वर्ग को वापस लौट जाएगा जहां से वह आया था। रही मजदूर वर्ग और गरीब जनता की बात तो उसकी राहत योजनाओं और सब्सिडी में सरकार कटौती ही कर रही हैं यह काले धन और सफेद धन का मामला नहीं बल्कि सरकार की नीतियों का मामला हैं। यदि मजदूर-मेहनतकश जनता कुछ हासिल करेगी तो काले धन के सफेद होने से नहीं बल्कि आपने संघर्ष द्वारा सरकार से राहत छीनकर।
आज काले धन की काली कोठरी में धमा चौकड़ी मचाने वाले बाबाओं से लेकर पूंजीपति तक और नेताओं से लेकर अफसर तक एक बात से खौफ खाए हुए हैं। वह यह कि यदि इस देश की भूखी-नंगी जनता उनकी इस पैशाची व्यवस्था के खिलाफ उठ खड़ी हुयी तो क्या होगा? मिश्र और ट्यूनीशिया का उदाहरण उनके सामने है जिसके चलते आज सारा अरब जगत जल रहा है और उसकी लपटें दक्षिणी यूरोप में स्पेन व ग्रीस तक पहुंच रही हैं। इसलिए ये सारे बौखलाकर जनता को बेवकूफ बनाने के लिए मैदान में उतर आये है। पूंजीवादी राजनीतिक पार्टियों के नेता इसके लिए सामने नहीं आ सकते क्योंकि वे बेतरह बेनकाब हो चुके हैं। इसलिए पूंजीपतिवर्ग और पूंजीवादी पार्टियाँ बाबा रामदेव और अन्ना हजारे सरीखे बिजूको को मैदान में उतार रही हैं। यह सबकी मिली भगत से नूरा-कुश्ती है जिसमें ठगी जाएगी केवल जनता। मजमेबाज बाबा भी रामलीला मैदान में अपनी अतडि़यों की करामात कुछ दिन दिखाने के बाद चंपत हो जायंगे।
लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था की सड़ान्ध और मजदूर-मेहनतकश जनता की समस्याएं तो वास्तवकि हैं। उन्हें मजमेबाजी से छू-मंतर नहीं किया जा सकता, न तो जंतर-मंतर पर और न रामलीला मैदान में
मजदूर वर्ग और गरीब मेहनतकश जनता को पूंजीपतियों के काले धन से लगा हुआ रामलीला मैदान का तंबू नहीं चाहिए। वह सर्दी-गर्मी सहने के आदी हैं। उसे चाहिए तहरीर चैक के तम्बू या फिर वे तम्बू जो आजकल स्पेन के शहरों के चैक पर लगे हुए हैं। जिस दिन मजदूर इसके लिए आ डटेंगे उस दिन मजमेबाज बाबा जैसे लोग भागकर पूंजीपतियों की गोद में दुबक जायेंगे।
यह जल्दी ही होगा। दुनिया के कई देशों में यह शुरु भी हो चुका है।
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