Friday, May 27, 2011

स्पेनी तहरीर चैक, जिन्दाबाद!

अरब दुनिया में विद्रोह की लहरें अब यूरोप के तट से भी टकराने लगी हैं। दक्षिण यूरोप के संकटग्रस्त देश बड़े विरोध प्रदर्शनों के बाद अब और ऊंचे संघर्षों की ओर बढ़ रहे हैं। इसकी शुरुआत स्पेन में हुयी है। 
स्पेन में 15 मई को देश भर में सरकार को कटौती नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन आयोजित किये गये थे। ऐसे प्रदर्शन पिछले तीन सालों में समय-समय पर आयोजित किये जाते रहे हैं। इस बार विशेष यह हुआ कि 15 मई के प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शन के बाद घर जाने के बदले सभी शहरों के चौक पर जम जाने का फैसला किया। राजधानी मैट्रिड समेत करीब 165 शहरों में नौजवान, मजदूर और अन्य मेहनतकश लोग इन जगहों पर जम गये। सबसे बड़ा जमावड़ा राजधानी मैट्रिड के सोल चौक पर हुआ जहां दसियों हजार लोग तम्बू-कनात गाड़कर वहीं बैठ गये। लोगों के लबों पर ‘तहरीर चौक-तहरीर चौक’ का नारा गूंज उठा।

स्पेन की तथाकथित समाजवादी पार्टी की सरकार ने यह सोचा था कि लोग  चौक  पर जमेंगे  नहीं। एक दो दिन में भाग खड़े होंगे। लेकिन जब ऐसा होता नहीं दिखा तो उनके हाथ-पांव फूलने लगे। उसने 22 तारीख को होने वाले स्थानीय निकायों के चुनावों का बहाना बनाकर प्रदर्शनों पर प्रतिबन्ध लगा दिया तथा लोगों को चौक  छोड़ कर जाने का आदेश दिया। लेकिन लोग अपनी जगह से हिले नहीं। तब सरकार ने न्यायालय का सहारा लिया। न्यायालय ने प्रतिबन्ध को उचित ठहराया। लेकिन लोगों ने न्यायालय के इस फैसले को भी मानने से इंकार कर दिया। वे अपनी जगह पर डटे रहे। 
जैसा कि उम्मीद थी सत्ताधारी पार्टी को स्थानीय निकायों में भारी हार का सामना करना पड़ा। उसे जनता के गुस्से का नतीजा भुगतना पड़ा। सत्ताधारी पार्टी को महज 28 प्रतिशत मत मिले जबकि विपक्षी पापुलर पार्टी को 36 प्रतिशत।
इन चुनावों के बाद में सभी शहरों में चौक पर जमे लोगों ने विचार विमर्श किया और फैसला किया कि वे अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे। वे चौक पर जमे रहेंगे।
प्रदर्शनकारी नौजवान और मजदूर-मेहनतकश नये तरह के जनतंत्र की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि वर्तमान पार्टियां और नेता पैसे के गुलाम हैं। उन्हें लोगों की समस्याओं की चिंता नहीं है। लोगों को एक नया जनतंत्र चाहिए जिसमें बेरोजगारी, गरीबी और भूखमरी जैसी समस्याओं का समाधान हो सके। 
स्पेन यूरोप का वह देश है जिसमें बेरोजगारी अपने सबसे भयंकर रूप में विद्यमान है। यहां बेरोजगारी 20 प्रतिशत से ज्यादा है। नौजवानों में बेरोजगारी तो और भी ज्यादा है- करीब 45 प्रतिशत। इस तरह हर चार व्यस्क में से एक और हर दो नौजवान में से एक बेरोजगार है। इस भयंकर बेरोजगारी के दौर में अब सरकार अपने को दीवालिया होने से बचाने के लिए बजट में कटौती कर रही है। लोगों पर सरकारी खर्च कम किया जा रहा है, तनख्वाहों में कटौती की जा रही है, सरकारी कर्मचारियों को निकाला जा रहा हैं।
यह सब इसलिए हो रहा है कि सट्टेबाज पूंजीपतियों ने भू-संपत्ति के क्षेत्र में बड़े पैमाने की सट्टेबाजी कर रखी थी।  जब 2007 में संयुक्त राज्य अमेरिका में सट्टेबाजी का बुलबुला फूटा तो उसी के साथ स्पेन की अर्थव्यवस्था भी गर्त में डूब गई। तब सट्टेबाज पूंजीपतियों को बचाने के लिए सरकार ने बड़े पैमाने पर पैसा झोंका। इससे सट्टेबाज पूंजीपति तो सुरक्षित हो गये लेकिन सरकार कर्जे में डूब गई। पूंजीपतियों के मुनाफे और पूंजी को सुरक्षित करने के लिए सरकार ने अब मजदूरों को चूसने के लिए हर संभव प्रयास शुरू किया।
स्पेन में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी पिछले दो दशक से ही विद्यमान है। अब 2007 से जारी संकट ने इस बेरोजगारी में भारी वृद्धि की है। बेरोजगारी ने सारी सीमाएं तोड़ दी हैं। लोगों का सब्र का बांध टूट गया है।
स्पेन में शहरों में चौक पर जमावड़ा शानदार शुरुआत है। हालांकि अभी नौजवानों और मजदूरों की मांग एक नये तरह के जनतंत्र की है लेकिन इसे आगे बढ़ने में देर नहीं लगेगी। अरब जगत से स्पेन न केवल इस मायने में भिन्न है कि वह एक विकसित देश है बल्कि साथ ही यह भी कि स्पेन में मजदूर वर्ग की विचारधारा की विरासत वहां पर्याप्त मजबूत है। स्पेन 1930 के दशक में स्पेनी क्रांति का देश है जिसमें लड़ने के लिए 40 हजार विदेशी क्रांतिकारी वहां पहुंचे थे। स्पेन की कम्युनिस्ट पार्टी कभी एक मजबूत पार्टी हुआ करती थी। आज वह भले ही सुधारवादी पार्टी बन चुकी पर वहां छोटे-बड़े ढेरों क्रांतिकारी संगठन विद्यमान हैं। ये सभी वर्तमान प्रदर्शनों में सक्रिय भी हैं।
ये सभी चीजें स्पेनी संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए आधार प्रदान करती हैं। संघर्ष के आगे बढ़ने के लिए वस्तुगत माहौल भी एकदम अनुकूल है। ऐसे में मजदूर वर्ग द्वारा संघर्ष को ज्यादा योजनाबद्ध ढंग से एक नये धरातल पर ले जाने के लिए जरूरी क्रांतिकारी मजदूर पार्टी का उभर कर सामने आना उतना मुश्किल कार्य नहीं है। 
स्पेन ने यूरोप में संघर्षों के नये धरातल की शुरुआत की है। इस संघर्ष के तेजी से आगे बढ़कर दक्षिण यूरोप में और फिर समूचे यूरोप में फैल जाने की पूरी संभावना है। साम्राज्यवादी पूंजीपति थर-थर कांप रहे हैं।
उन्हें कांपने दो! यह मजदूरों के लिए जशन का समय है। मजदूर वर्ग द्वारा पूंजीपति वर्ग पर प्रत्याक्रमण का समय नजदीक आ गया है। मजदूरो उठो कि धरती डोलने लगे।

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