यह मई दिवस हम दुनिया में बहुत उथल-पुथल के बीच मना रहे हैं। अरब जगत में जन विद्रोहों की आंधी आई हुयी है जिसमें मजदूर वर्ग बहुत अहम् भूमिका निभा रहा है। यद्यपि अपनी पार्टी न होने की वजह से मजदूर वर्ग इनमें नेतृत्वकारी स्थिति में नहीं है पर विद्रोहों की रीढ़ वही है। वही सबसे बढ़-चढ़कर लड़ाई लड़ रहा है और वही सबसे ज्यादा बलिदान कर रहा है। उसी की वजह से मिश्र व ट्यूनीशिया के तानाशाह भाग खड़े हुए। वही इन तानाशाहों की जगह सत्ता में बैठने वाले पूर्व तानाशाहों और साम्राज्यवादियों के गुर्गों को चैन से नहीं बैठने दे रहा है। वह ‘क्रांति’ सम्पन्न हो जाने की घोषणा करने वाले पूंजीवादी तत्वों को किनारे ढकेलकर वास्तव में क्रांति की ओर जाने का प्रयास कर रहा है।
मजदूर वर्ग ने ही बहरीन और यमन के शासकों का जीना हराम किया हुआ है। आज बहरीनी शासक सऊदी अरब के शेखों और साम्राज्यवादियों के साथ मिलकर कत्लेआम मचाए हुए है। वे हर चन्द कोशिश कर रहे हैं कि विद्रोह कुचल दिया जाय लेकिन वे सफल नहीं हो पा रहे हैं। इसी तरह यमन का सालेह भी कत्लेआम मचाकर विद्रोह को नहीं कुचल पा रहा है।
अरब जगत के इन विद्रोहों की लपटें अब अफ्रीका के बुर्किना फासों जैसे देशों तक फैल रही हैं।लेकिन दुनिया भर के पूंजीपतियों और साम्राज्यवादियों के लिए सबसे खतरनाक बात यह है कि विद्रोह की ये लपटें अन्य दिशाओं में भी फैल सकती हैं। ये पूरब में अफगानिस्तान, पाकिस्तान होते हुए भारत, वर्मा और चीन तक फैल सकती हैं। ये उत्तर पूर्व में मध्य एशिया के देशों से होते हुए रूस तक फैल सकती हैं। ये उत्तर दक्षिण यूरोप के देशों मसलन स्पेन, पुर्तगाल और इटली होते हुए बाल्टिक देशों (इस्टोनिया, लाटविया, लिथवानिया), आइसलैण्ड तथा पूर्वी यूरोप तक फैल सकती हैं। सब जगह उनके पहुंचने के लिए बहुत ज्वलनशील सामग्री मौजूद है। 2007 से शुरू हुए आर्थिक संकट ने जो कहर बरपाया है उसने यह ज्वलनशील सामग्री जुटाई है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह ज्वलनशील सामग्री उन देशों में भी मौजूद है जहां के शासक अपने यहां तेज विकास पर मगन हैं।
इसीलिए पूंजीवादी शासक और खासकर साम्राज्यवादी पुरजोर प्रयास कर रहे हैं कि समय रहते इन विद्राहों को कुचल दिया जाय। इसीलिए उन्होंने बहरीन में सेना भिजवाई। इसीलिए उन्होंने लीबिया पर हमला किया। लीबिया पर हमला करके विद्रोहों को दिग्भ्रमित करने और इनकी धार कुन्द करने का उन्होंने पूरा प्रयास किया है। सीरिया में भी इनकी कारगुजारियां इसी ओर लक्षित हैं।
पर साम्राज्यवादियों का अपना घर आज सुरक्षित नहीं है। आइसलैण्ड, आयरलैण्ड, स्पेन, पुर्तगाल और इटली ही नहीं इग्लैण्ड तक की सरकारें दीवालिया होने की कगार पर खड़ी हैं और इससे बचने के लिए वे मजदूर वर्ग को और ज्यादा पीस रही हैं। आर्थिक संकट शुरू होने पर इन सरकारों ने वित्तीय पूंजीपतियों को बचाने के लिए खूब धन लुटाया। अब ये पूंजीपति एक बार फिर खूब मुनाफा बटोर रहे हैं। जबकि मजदूर वर्ग भयानक बेरोजगारी और तनख्वाहों-सुविधाओं में कटौती का सामना कर रहा है। उस पर तुर्रा यह कि दीवालिया हो रही सरकारें इन पूंजीपतियों से वसूलने के बदले मजदूरों को और ज्यादा चूस रही हैं।
मजदूर इन सबका पुरजोर तरीके से विरोध कर रहे हैं। मजदूरों के यह विरोध आम हड़तालों से लेकर पुलिस से झड़पों तक पहूंच रहे हैं अभी तक यूरोप के मजदूरों से बहुत पीछे चल रहा अमेरिकी मजदूर वर्ग भी जाग रहा है। विस्कोंसिन में विधान सभा भवन पर तीन हफ्तों तक मजदूरों का कब्जा कोई सामान्य चीज नहीं थी। एक बार फिर अमेरिका में फैक्ट्रियों पर कब्जा करने की घटनाएं होने लगी हैं। आम हड़ताल अमेरिकी मजदूरों में बहस का मुद्दा बनने लगी है।
मजदूर वर्ग जागने लगा है और जाग कर बड़े पैमाने पर लड़ने लगा है। कहीं यह लड़ाई सामान्य हड़ताल के रूप में है, कहीं फैक्ट्री पर कब्जा करने के रूप में, कहीं विधान सभा पर कब्जा करने के रूप में, कहीं आम हड़ताल के रूप में तो कहीं यह जन विद्रोहों के रूप में है। अमेरिका से लेकर यूरोप तक और एशिया से लेकर अफ्रीका तक हर जगह यह लड़ाई साम्राज्यवादियों और पूंजीपतियों को भयभीत कर रही है, उनकी नींद उड़ा रही हैं।
आज जब हम 1886 की शिकागो की घटना के 125 साल बाद मई दिवस मना रहे हैं तो मजदूर वर्ग के शाहीदों को नमन करने के साथ हमें यह रेखांकित करना चाहिए कि मजदूर वर्ग अब दुनिया के कोने-कोने में मई दिवस मना रहा है। दुनिया के हर कोने में आज मजदूर हैं और मई दिवस पर सड़कों पर हैं। आज बस नहीं है तो उनका नेतृत्व करने वाली विचारधारा से लैस उनकी पार्टी। वह होती तो आज के उथल-पुथल के जमाने में बात ही कुछ और होती।
ऐसे में हर तरह की लड़ाईयों को पुरजोर तरीके से आगे बढ़ाते हुए मजदूर वर्ग और खासकर इसके सचेत तत्वों का प्राथमिक कार्य बन जाता है कि अपनी पार्टी का निर्माण करें। आइये इस मई दिवस पर हम यही संकल्प लें कि इस काम में हम अपनी जी-जान लगा देंगे।
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