Sunday, March 20, 2011

साम्राज्यवादियों को धूल चटा दो !

अमेरिका व ब्रिटिश  साम्राज्यवादियों  द्वारा इराक पर हमले के आठ साल पूरे होने  पर साम्राज्यवादियों ने एक और भयंकर अपराध कर डाला है। उन्होंने इस बार लीबिया पर हमला कर दिया है। फर्क केवल इतना है कि उस बार फ्रांसीसियों साम्राज्यवादियों ने अपने हितों की खातिर हमले की शुरू में विरोध किया था, इस बार वे लीबिया पर हमला करने में सबसे आगे हैं । साम्राज्यवादियों द्वारा पहले बारह सालों में यह चौथा बड़ा हमला है-यूगोस्लाविया, अफगानिस्तान, इराक और अब लीबिया।
हमेशा की तरह इस बार भी साम्राज्यवादियों ने लीबिया पर हमले के लिये झूठ-फरेब का सहारा लिया है। वे बहाना बना रहे हैं
 कि गद्दाफी अपनी जनता का कत्ल कर रहा है और उसे करने की इजाजत ‘अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय’ साम्राज्यवाद नहीं दे सकता। ठीक उसी समय जब साम्राज्यवादी यमन व बहरीन में जन विद्रोहों का दमन करने के लिय स्थानीय शासकों की मदद कर रहे हैं (बहरीन में तो इसके लिये सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में अपनी सेना भी भेज दी है।) जिसमें सैकड़ों लोग मारे जा रहे हैं, तभी वे लीबिया में मानव अधिकारों की रक्षा की बात कर रहे हैं अरब की शेखशाहियों के खिलाफ जन विद्रोह को कुचलने का समर्थन करते हुए वे इन्हीं शेखों के समर्थन का हवाला देकर लीबिया पर हमला कर रहे हैं। (जिस अरब लीग के समर्थन का साम्राज्यवादी हवाला दे रहे हैं उसके केवल 9 सदस्यों ने लीबिया पर ‘नो फ्लाई जोन’का समर्थन किया। दो देशों ने दसका विरोध किया और बाकी 11 बैठक में शामिल ही नहीं हुए। समर्थन करने वालों में खाड़ी के शेख ही प्रमुख थे। वे कितने जनवाद और मानवाधिकारों के रक्षक हैं, इसे केवल साम्राज्यवादी ही जानते होंगे)।
साम्राज्यवादियों ने सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव पास करने के कुछ घंटों के भीतर ही लीबिया पर हमला कर दिया। इस प्रस्ताव में वही फर्जी बात कही गयी कि लीबिया के लोगों की गद्दाफी से रक्षा के लिये सैनिक हस्तक्षेप जरूरी है। हालांकि यह कहा गया कि इस प्रस्ताव का मतलब लीबिया पर कब्जा नहीं है लेकिन इसका यही वास्तविक मतलब है ओर साम्राज्यवादी यही करने का प्रयास करेंगे। साम्राज्यवादियों के आपसी अंतर्विरोधों के चलते रूस और जर्मनी ने प्रस्ताव के पक्ष में मत नहीं दिया। चीन, ब्राजील व भारत ने भी मतदान नहीं किया। अरब लीब के समर्थन का हवाला देने वाले साम्राज्यवादी इस बात को ओझल करते हैं कि 53देशों वाले अफ्रीकी यूनियन ने सैनिक हस्तक्षेप से इन्कार किया था।
लीबिया पर हमले की साम्राजयवादियों को बहुत जल्दी थी। उन्होंने दिखाने के लिय भी गद्दाफी को एक या दो दिन का समय नहीं दिया। असल बात यह थी कि गद्दाफी के खिलाफ वे जिन साम्राज्यवादी पिट्ठुओं का समर्थन कर रहे थे वे गद्दाफी के सामने ठहर नहीं पा रहे थे। कुछ ही दिनों  में गद्दाफी इनको धूल चटा देता। इसलिये साम्राज्यवादियों को उन्हें बचाने के लिये तुरत-फुरत हमला करना जरूरी था। लीबिया में जन विद्रोह हड़पने के लिये ही साम्राज्यवादियों ने इन पिट्ठुओं को आगे किया था। अब इनकी पराजय से दनका खेल बिगड़ जाता। इन पिट्ठुओं के द्वारा वे गद्दाफी को हटाकर और भी साम्राज्यावद परस्त लोगों को सत्ता पर बिठाना चाहते हैं। इसके जरिये वे अरब के जन विद्रोहों को भटकाने में कामयाब होने की भी उम्मीद करते हैं। वे इसमें नाकामयाब होने पर सीधे लीबिया पर कब्जा करने या लीबिया का बंटवारा कर उसके तेल बहुल पूर्वी क्षेत्र पर कब्जा करने तक भी जा सकते हैं।
साम्राज्यवादी अरब जन विद्रोहों से भयभीत हो चुके हैं, जिनकी धार साम्राज्यवादियों के भी खिलाफ है क्योंकि स्थानीय शासक साम्राज्यवादियों के पिट्ठू हैं या उनके गुनाह में शरीक हैं। वे इन विद्रोहों को कुचलने की कोशिश कर रहे हैं (यमन, बहरीन इत्यादि में) इनकी गति को थामने की कोशिश कर रहे हैं (मिस्र व ट्यूनेशिया में) तथा वे इन्हें भटकाने और इनसे फायदा उठाने की भी कोशिश कर रहे हैं (लीबिया में)।
लेकिन इन विद्रोहों ने साम्राजयवादियों के आपसी अंतर्विरोधों को भी भड़काया है। लीबिया पर हमले का न केवल रूस बल्कि जर्मनी ने भी विरोध किया। यदि फ्रांस व इंग्लैण्ड हमला करने में आगे हैं तो जर्मनी हमले के विरोधप में। फ्रांस के इस हमले में पहल लेने की वजह उसका यह भय है कि गद्दाफी के बाद जो साम्राज्यवाद परस्त सत्ता में आयेंगे वे अमेरिकी साम्राज्यवादियों से ज्यादा सटे होंगे।
साम्राज्यवादियों के इस हमले से एक और देश की तबाही का खतरा पैदा हो गया है। यूगोस्लाविया, इराक और अफगानिस्तान के बाद यह चौथा देश होगा जिसे साम्राज्यवादी सीधे कब्जाकारी युद्ध से तबाह करेंगे। साम्राज्यवादियों को इससे परेशानी नहीं है। तेल और अपने प्रभुत्व की खातिर वे किसी भी हद तक जायेंगे।
गद्दाफी की तानाशाही से त्रस्त लीबिया की जनता अपने देश में साम्राज्यवादियों को उसी तरह स्वीकार नहीं करेगी जैसे इराक व अफगानिस्तान की जनता ने नहीं किया। इटली द्वारा कब्जे से लेकर बाद तक लीबिया की जनता ने इसे पहले ही दिखा रखा है कि वह साम्राज्यवादियों से किस हद तक लड़ सकती है।
लीबिया पर हमला करके और बहरीन में विद्रोह को कुचलने के लिय सेना भिजवाकर साम्राज्यवादियों ने अरब की विद्रोही जनता की गुस्से की आग को और भड़का दिया है। इससे विद्रोह की ज्वाला और भड़केगी।
भारत का मजदूर वर्ग साम्राज्यवादियों ओर उनके पिट्ठुओं की भर्त्सना करता है और इसके खिलाफ लड़ने का संकल्प लेता है।

No comments:

Post a Comment