Saturday, March 19, 2011

परमाणु ऊर्जा और मजदूर वर्ग

जापानी लोग एक भयंकर खतरे का सामना कर रहे हैं। यह खतरा साम्राज्यवादी पूंजीपतियों के अपराधों को सामने ला रहा है और  दिखा रहा है कि तकनीक के ऊपर पूंजी किस तरह हावी होती है।
 परमाणु ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। परेशानी की बात यह है कि इस ऊर्जा को सुरक्षित ढ़ंग से इस्तेमाल करने की तकनीक अभी तक विकसित नहीं  हो पायी है। ‘कोल्ड फ्यूजन’ की तकनीक पर अभी भी शोध कार्य जारी है। अभी जो ‘फिसन’ की तकनीक है, उससे अनियंत्रित  विस्फोट और रेडियेशन लीक का खतरा तो होना ही है, साथ ही बाद में बच गये रेडियो एक्टिव कचड़े को सुरक्षित ढ़ंग से ठिकाने लगाने की भी समस्या होती है। यह रेडियो एक्टिव कचड़ा मानव स्वास्थ्य के लिये बहुत हानिकारक है।
 लेकिन इन तकनीकी समस्याओं के अलावा और भी ज्यादा महत्तवपूर्ण एक चीज है जो परमाणु बिजलीघरों के खतरे को बहुत बढ़ा देती है। यह है पूंजी या पूंजी के मुनाफे का लालच। इसके चलते किसी भी मामले में खर्च करते समय उससे होने वाला मुनाफा  बुरी तरह हावी रहता है। पूरे समाज के सम्पूर्ण हित के मुकाबले निवेश की गई पूंजी  पर तात्कालिक मुनाफा ही सर्वोपरि होता है। यदि यह पूरे समाज की कीमत पर होता है तो कोई बात नहीं। बल्कि पूंजीवाद में होता ही यही है। इसमें मुनाफा पूरे समाज की कीमत पर ही कमाया जाता है, खासकर मजदूरों और प्रकृति की कीमत पर।
 आज परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल के मामले भी यही सच है। परमाणु बिजली घर बनाते वक्त यदि सुरक्षा का ध्यान रखा जाता है तो उससे भी ज्यादा ध्यान मुनाफे का रखा जाता है। इस कारण यदि बिजली घर बनाने में धांधली न भी की जाये, जो भारत जैसे देशों में अक्सर होती है, तो भी मुनाफे की दर सुरक्षा मानकों की सीमा बांध देती है। ऊपरी तोर पर संयत्र सुरक्षित मान लिया जाता है जबकि  वक्त आने पर पता चलता है कि उसे  और ज्यादा सुरक्षित बनाया जाना चाहिए था।
 लेकिन पूंजीवाद में बार-बार सबक सीखने के बावजूद सबक नहीं सीखा जाता। मुनाफे का लालच सबक सीखने नहीं देता।
 स्वाभाविक ही है कि इस समस्या का समाधान पूंजीवाद के खात्मे में ही है। लेकिन ढ़ेरों लोग इस निष्कर्ष तक पहुंचने के बदले विज्ञान और तकनीक के विकास के ही विरोधी हो जाते हैं। वे और बेहतर तकनीक के विकास और ज्यादा सुरक्षित संयत्र बनाने की बात करने के बदले तकनीक से पलायन की बात करने लगते हैं। आधुनिक विज्ञान और तकनीक द्वारा प्रदत्त  सभी सुविधाओं का भरपूर इस्तेमाल करते हुए भी वे तकनीक का विरोध करते हैं। वे पूंजी से परे जाने की बात करने के बदले पूंजीवाद से पीछे जाने की बात करने लगते हैं। पूंजीपति वर्ग ऐसे लोगों की धन-धान्य से मदद भी करता है। इससे समाज में विभ्रम पैदाकरने और पूंजीवाद के विकल्प के न उभरने देने में मदद मिलती है।
 यदि जापान जैसे अति विकसित साम्राज्यवादी देश में परमाणु बिजलीघरों की यह स्थिति है तो भारत में गम्भीर स्थिति की कल्पना ही की जा सकती है। यहां सुरक्षा मानक न केवल ढीले हैं बल्कि भ्रष्टाचार के चलते इस बात की पूरी सम्भावना है कि वे लचर सुरक्षा मानक भी न लागू हों।
 पर्यावरण मंत्री जय राम नरेश  ने स्वीकार किया है कि जैतपूर में लगाये जाने वाला परमाणु संयत्र, जिसका वहां की स्थानीय जनता विरोध कर रही है, में उस स्तर के सुरक्षा मानकों को ध्यान में नहीं रखा गया है जिसकी जरूरत इस समय जापान के परमाणु संयत्रों के मामले में पड़ रही है।
 भारत सरकार ने अमेरिकी बहु राष्ट्रीय निगमों, जो परमाणु संयत्र बनाते हैं, के बाजार के लिये अमेरिकी सरकार के सामने समपर्ण कर दिया था। इसके लिये कांग्रेस सरकार किसी भी हद तक गई। उसने सांसदों को पैसे देकर खरीदा भी।
 भारत में परमाणु संयत्र वास्तव में बहुत गम्भीर खतरा हैं। केवल मजदूर वर्ग के संघर्ष ही इस खतरे को कम करने की ओर बढ़ने के लिये पूंजीपतियों की सरकार को मजबूर कर सकते हैं।

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