Friday, March 18, 2011

कठमुल्ले शासक नष्ट होकर रहेंगे

अरब जगत में जन विद्रोहों से घबराये हुए साम्राज्यवादी इन्हें कुचलने  के लिये पूरी तरह सक्रिय हो चुके हैं। एक ओर वे लीबिया में गद्दाफी को सत्ता से हटाने के लिये वहां सैनिक हस्तक्षेप की बात कर विद्रोही जनता का साथ देने का ढोंग कर रहें हैं तो दूसरी ओर  उन्होंने सऊदी अरब और संयुक्त अमीरात के प्रतिक्रियावादी शासकों के जरिये बहरीन में जन विद्रोह कुचलने के लिये सेना भेज दी है। बहरीन में विद्रोही जनता राजा का शासन समाप्त करने के बहुत करीब पहुंच गयी थी।
बहरीन में महीने भर से आगे बढ़ता हुआ जन विद्रोह वहां पहुंच गया था जब एक छोटे से अरब देश में राजा का शासन लगभग पंगु हो गया था। अरब राजा के सामने भागने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।
ऐसे में सऊदी अरब के प्रतिक्रियावादी शासक व साम्राज्यवादी उसकी रक्षा में आगे आये। सऊदी अरब के प्रतिक्रियावादी शासकों ने अमेरिकी साम्राज्यवादियों से सलाह मशविरा किया और फिर संयुक्त अरब अमीरात के साथ मिक्कर  उन्होंने बहरीन में अपनी सेना उतार दी।
सऊदी अरब के शासक अरब जगत में ही नहीं बल्कि सूमचे इस्लामी जगत में प्रतिक्रियावाद  के गढ़ हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादी इन्हीं के साथ सांठ-गांठ कर पश्चिम एशिया में अपनी साम्राज्यवादी कारगुजारियां जारी रखे हुए हैं। वहां यदि इनका एक पाया इस्राइल है तो दूसरा सऊदी अरब। गद्दाफी के खिलाफ सैनिक हस्तक्षेप करने की बात करने वाले साम्राज्यवादी सऊदी अरब शेखों के खिलाफ न केवल कुछ नहीं बोल रहे बल्कि वे बहरीन जैसे देशों में जन विद्रोह को कुचलने के लिये सेना भिजवा रहे हैं।
इस बाहरी सेना ने बहरीन में विद्रोही जनता पर कहर बरपाना शुरू भी कर दिया है। उसने लम्बे समय से चैकों में जमे हुए विद्रोहियों पर गोलियां दागी हैं। बहरीन राजा और उसके लगुए-भगुए सोच रहे हैं की इस सैनिक  हस्तक्षेप के जरिये वे बहरीन विद्रोह पर काबू पा लेंगे।
साम्राज्यवादी और प्रतिक्रियावादी कभी नहीं सीखते। इसलिये वे सोचते हैं कि वे बाहर से सैनिक हस्तक्षेप कर बहरीन के जन विद्रोह को कुचल देंगे। लेकिन इराक से लेकर अफगानिस्तान तक के ताजा उदाहरण उलटी कहानी कहते हैं। यहां तक कि लीबिया में गद्दाफी के विरोधी भी इसी बात से भयभीत होकर वहां साम्राज्यवादियों  को बुलाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। 
बहरीन में सेनिक हस्तक्षेप कर सऊदी अरब एवं संयुक्त अरब अमीरात के प्रतिक्रियावादी शासकों ने खुद अपने यहां व्यापक जनविद्रोह की ज्वाला को भड़काने की संभावना बढ़ा दी है। उन्होंने समूचे अरब जगत की घृणा और ज्यादा अपने खिलाफ केन्द्रित कर ली है। वे भूल रहे हैं कि यदि महाबली अमेरिका इराक व अफगानिस्तान में आज पानी मांग रहा है तो वे तो कुछ भी नहीं हैं।
साम्राज्यवादी और अरब के प्रतिक्रियावादी शासक अरब की विद्रोही जनता को इस तरह परास्त नहीं कर सकते । उन्होंने अपने पांव पर गिराने के लिये और बड़ा पत्थर उठा लिया है।

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