Tuesday, March 8, 2011

साम्राज्यवादियों के हस्तक्षेप का विरोध करो

अरब में जन विद्रोह की लपटों से शुरु में हतप्रभ हो गए साम्राज्यवादी इस समय लीबिया में अपना घृणित खेल खेलने में लग गए हैं। वे हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि लीबिया के विद्रोह का इस्तेमाल कर वे वहां अपनी मनपसंद पिठ्ठू सरकार बिठा दें या यदी यह संभव न हो सके तो तेल के भंडार वाले देश के पूर्वी हिस्से को अलग कर उस पर प्रत्य़क्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से कब्जा कर लिया जाए।इसके लिए वे गद्दाफी सरकार द्वारा नर संहार का बहाना बना रहे हैं।
 अफगानिस्तान और इराक पर हमला कर उन्हें तबाह कर देने वाले और वहां लाखों लोगों की हत्या कर देने वाले अमेरिकी व ब्रिटिश साम्राज्यवादी लीबिया में नर संहार का मामला उठा रहे हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लीबिया सरकार के खिलाफ प्रस्ताव पास करा दिया और बराक ओबामा तथा डेविड कैमरून कह रहे हैं कि वे किसी विकल्प से इंकार नहीं करते यानि वे लीबिया पर हमला भी कर सकते हैं। वे इराक की भी बात कर रहे हैं। अमेरिकी, ब्रिटिश और नाटो के युद्धपोत भूमध्य सागर में लीबिया की सीमा पर इकट्ठे हो रहे हैं।
    इसीके साथ धुंआधार प्रचार के द्वारा गद्धाफी और उनकी सरकार के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है। इसमें 1969से पहले लीबिया के साथ साम्राज्यवादियों के संबंधों की चर्चा नहीं की जा रही है और न ही यह बताया जा रहा है कि पिछले दशक भर से गद्धाफी साम्राज्यवादियों से सटे रहे हैं। आज गद्धाफी की सेना जिन हथियारों का इस्तेमाल कर रही है वे अमेरिकी-ब्रिटिश साम्राज्यवादियों द्वारा ही बेचे गए थे। साम्राज्यवादी कुल मिलाकर वैसे ही झूठ का धुंध तैयार कर रहे हैं जैसे इराक युद्ध के पहले किया गया था।
    इस झूठ-फरेब में लीबिया में गद्धाफी के खिलाफ एक अनाम विरोध पक्ष की बात की जा रही है जो विद्रोह का नेतृत्व कर रहा है। लेकिन यह विरोध पक्ष किन लोगों को लेकर बना है और उनके क्या उद्देश्य हैं यह नहीं बताया जा रहा है। यह भी नहीं बताया जा रहा है कि इसे हथियार कहां से मिल रहे हैं। बस इतनी सी बात की जा रही है कि इसमें वकील, जज, अध्यापक, पुराने मंत्री इत्यादि हैं।
    लीबिया में पूंजीपति वर्ग का यह धड़ा जो सत्ता में आना चाहता है और जिसे साम्राज्यवादियों का समर्थन मिल रहा है, खुलेआम यह हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है कि वह लीबिया में विदेशी हस्तक्षेप को आमंत्रित करे। औपचारिक तौर पर वह यही कह रहा है कि वह देश में विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ है। लेकिन इसके कुछ तत्व ‘नो फ्लाई जोन’ या लीबिया की सेना की वायु क्षमता समाप्त करने के लिए ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की वकालत कर रहे हैं।
    अब इस बात के निश्चित प्रमाण मौजूद है कि इस समय लीबिया में अमेरिकी व ब्रिटिश सैनिक विशेषज्ञ छिपे रूप में मौजूद हैं और वे कुछ न कुछ भूमिका निभा रहे हैं। ऐसे ही एक ब्रिटिश ग्रुप के तो पकड़े जाने की भी खबर है।
    इस तरह स्पष्ट है कि साम्राज्यवादी लीबिया के विद्रोह का फायदा उठाकर वहां अपनी पहले से भी ज्यादा मजबूत स्थिति बना लेना चाहते हैं। वे जन विद्रोह को वह मोड़ दे देना चाहते हैं कि विकल्प केवल दो बच जाएं- एक ओर गद्दाफी की सरकार और दूसरी ओर साम्राज्यवादियों का तथाकथित मानवतावादी हस्तक्षेप। गद्धाफी की सरकार में सालों तक सत्ता का सुख भोगने वाले ढेरों लोग इस समय गद्दाफी का साथ छोड़कर साम्राज्यवादियों के बगलगीर हो रहे हैं।
    अफ्गानिस्तान में तालिबान बनाम साम्राज्यवादियों और इराक में सद्दाम हुसैन बनाम साम्राज्यवादी के उदारहण ने पहले ही अरब जगत सहित दुनिया की जनता के सामने यह साफ कर दिया है कि स्थानीय तानाशाहों और साम्राज्यवादियों को एक-दूसरे का विकल्प बताना साम्राज्यवादियों की घृणित चाल है। वस्तुतः दोनों एक दूसरे की मदद करते हैं।
लीबिया का मजदूर वर्ग और अरब जनता साम्राज्यवादियों की इन घृणित चालों से अच्छी तरह वाकिफ है। उसने पिछले सौ सालों से साम्राज्यवादियों की इस क्षेत्र में कारगुजारियां देखी हैं। और अब तो वह जनता विद्रोह करती हुई सड़कों पर है। विद्रोही जनता को इतनी आसानी से बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। लीबिया के मजदूर साम्राज्यवादियों की चालों को आसानी से सफल नहीं होने देंगे। इसके विपरीत उन्हें धूल चटा देंगे।
इस बीच भारत के मजदूरों को भारत के घृणित पूंजिपति वर्ग की सरकार का पुरजोर विरोध करना होगा जो अरब विद्रोहों में पूरी तरह बेशर्मी के साथ अमेरिकी साम्राज्यवादियों का अनुसरण कर रही है। इसने लीबिया के मामले पर नतमस्तक होकर अमेरिकी साम्राज्यवादियों के साथ वोट दिया। आगे वह और भी नीचे उतर सकती है।

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