पूंजीपति वर्ग की चाकर पार्टियों से जुड़ी केन्द्रीय ट्रेड यूनियन फेडरेशनों ने एक बार फिर देश के मजदूरों को छला। वे महीनों से मजदूरों को बता रहे थे कि वे सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ 23 फरवरी को संसद मार्च करेंगे लेकिन जब इस दिन हजारों की संख्या में मजदूर दिल्ली में इकट्ठा हुए तो उन्होंने नाम के लिए भी संसद मार्च नहीं किया, संसद को घेरने की बात दूर रही। इसके बदले उन्होंने एक प्रतिनिधि मंडल लोकसभा अध्यक्ष से मिलने भेज दिया।
स्वयं इस विरोध प्रदर्शन को सफल बनाने के लिए उन्होंने कोई गंभीर कोशिश नहीं की। सीटू, एटक, एस एम एस एवं इत्यादि से जुड़े हुए फेडरेशनों की कुल औपचारिक सदस्यता करोड़ में है। लेकिन 23 फरवरी को दिल्ली में कुछ लाख मजदूर भी नहीं आये। अकेले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ही भांति-भांति के बीसियों लाख मजदूर हैं। वे अकेले ही राजधानी को ठप्प कर सकते थे। लेकिन उन्हें इसके लिए गोलबंद नहीं किया गया। इसके बदले थोड़े से मजदूरों को लाकर खानापूर्ति कर ली गयी।
यह इस हद तक था कि इन पतित फेडरेशनों के नेताओं ने संसद मार्च का दिखावा भी नहीं किया। इन्हें इस बात का भय था कि यदि वे संसद मार्च का दिखावा भी करेंगे तो इस बात की संभावना है कि मजदूर उन्हें पीछे छोड़कर संसद घेरने चल देंगे। जब अरब देशों में आग लगी हुई हो, जब यूनान इत्यादि यूरोपीय देशों में भी मजदूर सड़कों पर उतरे हुए हों तब पूंजीपतियों के इन चाकरों का भय से पीला पड़ जाना स्वाभाविक था। भाकपा, माकपा इत्यादि के नेता अपने पूंजीपति आकाओं को पहले ही आश्वास्त करके आये थे कि कुछ भी परेशानी वाली बात नहीं होगी। इसलिए सरकार ने पुलिस की व्यवस्था भी नाम की ही थी। सरकार पूरी तरह आश्वस्त थी कि कुछ भी गड़बड़ नहीं होने वाला।
भाकपा, माकपा, इत्यादि से जुड़े इन फेडरेशनों का और भाकपा-माकपा इत्यादि का इन प्रदर्शनों को आयोजित करने का एक ही मकसद होता है-मजदूर वर्ग के बढ़ते गुस्से को ठंडा कर देना, ‘प्रेसर रीलीज’ कर देना। ऐसा कर वे पूंजीवादी व्यवस्था को सुरक्षित करते हैं। पूंजीपति वर्ग ने इसीलिए उन्हें अपनी सेवा में लगा रखा है।
आज जबकि अरब देशों में मजदूर वर्ग सत्ता के सवाल से जूझ रहा है तब भारत के मजदूर वर्ग को दिल्ली में इसलिए इकट्ठा किया जाय कि उससे कुछ मीठी-मीठी बातें कर फुसला कर वापस भेज दिया, इससे अच्छी पूंजीपति वर्ग की सेवा क्या होगी? दिल्ली में इकट्ठा हुए मजदूरों के चेहरों पर पूंजीवादी व्यवस्था से नफरत और उसके खिलाफ किसी भी हद तक जाने का संकल्प साफ झलक रहा था। लेकिन व्यवस्था पोषकों को तो कुशलता ही इस बात में है कि कैसे मजदूर वर्ग की क्रांतिकारी ऊर्जा का क्षरण किया जाय।
आज दुनिया के किसी भी देश की तरह भारत में भी जरूरी है कि उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों को पलटने के लिए सीधे पूंजीपति वर्ग और उसकी सरकार पर हमला बोला जाय। वक्त केवल अपनी मांग पेश करने का नहीं, हमले की तैयारी करने और फिर हमला करने का है। लेकिन यह हो सके इसके लिए जरूरी है कि मजदूर वर्ग को भाकपा, माकपा, इत्यादि के प्रभाव से मुक्त किया जाय। इसके लिए जरूरी है कि मजदूर वर्ग की क्रांतिकारी लामबंदी की प्रक्रिया को हर तरीके से तेज किया जाय।
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