Saturday, February 12, 2011

यह क्रांति नहीं है। मजदूरो, आगे बढ़ो!

             मिश्र के विद्रोह में मजदूर वर्ग के बड़ी मात्रा में प्रवेश करते ही हुस्नी मुबारक भाग खड़ा हुआ। साम्राज्यवादियों और मिश्री पूंजीपति वर्ग को यही रास्ता नजर आया कि वे हुस्नी मुबारक को किनारे लगाकर सत्ता  की कमान सेना के हाथ में सौंप दें। अब वे यह प्रचारित कर रहे हैं कि मिश्र में क्रांति हो गई है। वे आगे पूरी कोशिश करेंगे कि मिश्र की जनता चुपचाप अपने घरों में लौट जाये और लूटने-खसोटने का खेल पहले की तरह जारी रहे।
हुस्नी मुबारक का गद्दी छोड़कर भागना क्रांति नहीं है। क्रांति के लिए जरूरी है कि
सत्ता एक वर्ग के हाथों से दूसरे वर्ग के हाथों में जाये। लेकिन यहां तो पहले की तरह अब भी पूंजीपति वर्ग सत्तानशीन  है। सत्ता अभी तक इसी वर्ग के हाथों में, इसी के नुमाइंदों के हाथों में है। अभी सेना की जिस काउन्सिल ने सत्ता संभाली है उसमें पूंजीपति वर्ग के अफसर ही हैं।
सही मायनों में तो यह पूंजीपति वर्ग के भीतर भी सत्ता का हस्तांतरण नहीं है। वर्तमान सेना हुस्नी मुबारक और अमेरिकी साम्राज्यवादियों की पाली-पोषी हुयी है। हुस्नी मुबारक खुद भी सेना का ही अफसर था। वह सीधे तौर पर सेना को साथ लेकर शासन कर रहा था। जहां तक अमेरिकी साम्राज्यवादियों की बात है वे जो सालाना 2 अरब डॉलर की मदद मिश्र की सरकार को दे रहे थे उसका ज्यादातर सेना पर ही खर्च हो रहा था। इस तरह सेना पर भी अमेरिकी साम्राज्यवादियों का अच्छा खासा प्रभाव है। उसके बड़े अफसर उसके साथ जुड़े हुए हैं। जहां तक मुबारक द्वारा नियुक्त उप राष्ट्रपति सुलेमान की बात है, वह अमेरिकी साम्राज्यवादियों और इस्राइली शासकों का पसंदीदा व्यक्ति है और इसीलिए वह खुफिया विभाग का प्रधान था।
इस तरह सेना द्वारा सत्ता संभालना असल में उन्हीं पुरानी शक्तियों के मन की बात है, उन्हीं के फायदे की बात है। उस पर तुर्रा यह कि सेना ने सत्ता किसी सैनिक तख्तापलट के जरिये नहीं, बल्कि जन विद्रोह के कंधों पर सवार होकर संभाली है। 
इस बात की पूरी संभावना है कि जन विद्रोह को धोखाधड़ी के जरिये शांत करने के बाद सेना पूरी तरह में जम जाये और जो स्वतंत्र व स्वच्छ चुनाव के जरिये जनतंत्र कायम करने की बात हो रही है, वह गायब हो जाये। मिश्र एक पूंजीवादी जनतंत्र बनने के बदले, जिसका इस समय साम्राज्यवादी और पूंजीवादी शासक इतना शोर मचा रहे हैं, सैनिक तानाशाही का शिकार हो जाये।
क्रांति होने के लिए जरूरी था कि सेना में विद्रोह हो जाता और सैनिक, आम जनता के बेटे सैनिक जनता के साथ आ जाते। तब अफसर पूंजीपति वर्ग के साथ रह जाते जबकि आम सैनिक जनता के साथ मिलकर जन सेना का, लाल सेना का निर्माण करते। तब  सत्ता पूंजीपति वर्ग के हाथ से निकलकर मजदूरों व किसानों के हाथ आ जाती। लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है।
मिश्र के जन विद्रोह में शुरुआती दौर में मध्यवर्गीय तत्वों की बहुलता से क्रांति की ओर विकास में बाधा पहुंची। बाद के दौर में, खासकर 8-9 फरवरी को जब मजदूर बड़ी संख्या में विद्रोह में शामिल होने लगे तब स्थितियां बदलने लगीं। और तब मिश्र के पूंजीवादी शासकों और साम्राज्यवादियों ने मुबारक को सत्ता से रुखसत कर क्रांति सम्पन्न हो जाने का प्रचार करना शुरू कर दिया। 
मिश्र के मजदूर वर्ग को इस झांसे में नहीं आना है। मिश्र में तो अभी महज शुरुआत हुयी है। अभी असली क्रांतिकारी प्रक्रिया एकदम शुरुआती चरण में है। क्रांति की ओर आगे बढ़ने के लिए मिश्र के मजदूर वर्ग को आगे बढ़ना होगा। उसे बड़े पैमाने के विद्रोह में उतरना होगा। उसे किसानों और तबाहहाल छोटी संपत्ति वालों को अपने पीछे गोलबंद करना होगा। सबसे बढ़कर, उसे अपना क्रांतिकारी नेतृत्व विकसित करना होगा।
समूची दुनिया का मजदूर वर्ग मिश्र के मजदूरों के साथ है। यदि मिश्र का मजदूर वर्ग आगे बढ़ता है तो
वह पायेगा कि न केवल अरब जगत का मजदूर वर्ग बल्कि सारी दुनिया का मजदूर वर्ग उसके साथ एकजुट है। धार्मिक कठमुल्लावादी ताकतों के प्रति सावधान रहते हुए मिश्र के मजदूरों को पूंजीपतियों-साम्राज्यवादियों को धूल चटाने के लिए बिना रुके हमला बोल देना चाहिए।

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