Sunday, December 26, 2010

उन्हें सजा मिलनी ही चाहिये!

             छत्तीसगढ़ की रायपुर सेशन कोर्ट के जज बी.पी.वर्मा ने 24 दिसम्बर को विनायक सेन, पियूष गुहा और नारायण सान्याल को दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुना दी। उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा-124 (ए) और 20 (बी) के तहत राजद्रोह के लिए सजा सुनाई गई है। इसके अलावा उन्हें पांच साल की सजा गैर कानूनी गतिविधि (निवारक) कानून (1967) की धारा-39 (2) व छत्तीसगढ़ विशेष सुरक्षा अधिनियम (2005) की धारा-8 के तहत भी सजा सुनाई गई। इन धाराओं के तहत इनके ऊपर   एक अपराधी संगठन, भाकपा (माओवादी) की मदद करने का आरोप लगाया गया था। नारायण सान्याल को यूएपीए की धारा-20 के तहत अलग से 10 साल की सजा सुनाई गई, इस आरोप के तहत कि वे एक प्रतिबंधित संगठन के सदस्य हैं। मजे की बात यह है कि उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा-121 (ए) यानी भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिये दोषी नहीं पाया गया।
फैसला सुनाते समय जज वर्मा ने कहा कि ये सजायें जायज हैं क्योंकि  जिस तरह से आतंकवादी और माओवादी संगठन प्रदेश और केंद्र सरकार के पैरा मिलिटरी सुरक्षा बलों के लोगों तथा मासूम आदिवासियों को मार रहे हैं व देश में और समुदायों में भय, आतंक और अव्यवस्था फैला रहे हैं, उसे देखते हुए कोर्ट आरोपियों के प्रति नरम रुख नहीं अपना सकता और उन्हें कानून के तहत न्यूनतम सजा नहीं दे सकता।
इसलिए जज साहब ने अधिकतम सजा दी।
भारतीय शासक वर्ग और उसके न्यायालय के इस फैसले पर तुरन्त ही व्यापक प्रतिक्रिया हुयी। ऐसा कम ही हुआ है कि किसी फैसले का इस तरह तुरन्त तीखा विरोध किया गया हो। अमेनेन्स्टी इंटरनेशनल जैसे साम्राज्यवादी सुधारवादी संगठनों से लेकर मजदूर किसान संघर्ष समिति जैसे एन जी ओ तक और भाकपा, भाकपा (माले) जैसी सुधारवादी पार्टियों से लेकर क्रांतिकारी संगठनों तक, अरुन्धती राय से लेकर प्रभात पटनायक व नोम चोम्सकी जैसे बुद्धिजीवियों तक सबने इस फैसले पर अपना विरोध दर्ज किया।
जैसा कि लोगों ने चिन्हित किया है उसी छत्तीसगढ़ में शंकर गुहा नियोगी जैसे मजदूर नेता के हत्यारे न्यायालय द्वारा रिहा होकर मजे से घूम रह हैं, क्योंकि वे हत्या के लिये पूंजीपतियों द्वारा भाड़े पर लिये गये थे और उन्हें भाजपा का पूरा समर्थन प्राप्त था। इस देश में नरेन्द्र मोदी जैसे लोगों पर गुजरात नरसंहार के लिये मुकदमा भी दायर नहीं हो सका है। भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य अभियुक्त एंडरसन को भारत सरकार ने सुरक्षित भगा दिया और उसके कुछ निचले अधिकारियों को महज दो-दो साल की सजा सुनाई गई। इस देश में सज्जन कुमार से लेकर पंढेर तक मजे से घूम रहे हैं। लेकिन विनायक सेन, पियूष गुहा और नारायण सान्याल उम्र कैद की सजा पा रहे हैं।
पर जरा गौर से देखें तो ऐसा ही होना चाहिए। इसके उल्टा क्यों होना चाहिए? टाटा-अंबानी से लेकर रियो टेन्टा तक सब आदिवासियों को खदेड़ कर वहां मौजूद    खनिजों व वन सम्पदा पर कब्जा कर लेना चाहते हैं। विनायक सेन और नारायण सान्याल उनका विरोध करते हैं। ऐसे में टाटा-अम्बानी की सरकार को उनके साथ क्या करना चाहिये? उन्हें उनके साथ वही करना चाहिए जो उनहोंने    चेरुकुटि राजकुमार उर्फ आजाद के साथ किया यानी तथाकथित मुठभेड़ में  मार देना चाहिए। यह तो भारत सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार की बड़ी मेहरबानी है कि इन्हें मार देने के बदले उन पर मुकदमा चलाया गया और उन साक्ष्यों के अधार पर उम्र कैद की सजा सुना दी गई जो किसी भी ढंग के न्यायालय में चुटकियो  में खारिज कर दिये जाते। जिस न्यायालय में इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट को पकिस्तान की आई एस आई बताया जाता हो, उसके स्तर की कल्पना की जा सकती है। लेकिन भारत के पूंजीपति वर्ग के राज्य के आम चरित्र की तरह न्यायालय को भी नीचे से नीचे नहीं गिरना चाहिए?
इस पर बहुत हायतौबा मचाने की जरूरत नहीं है कि विनायक  सेन एक भले आदमी हैं, कि वे आदिवासी गांवों में गरीबों के स्वास्थ्य के लिये काम कर रहे थे, कि वे पी यू सी एल की ओर से मानवाधिकारों के लिये भी लड़ते हैं, कि वे खुद कभी छत्तीसगढ़ सरकार को ग्रामीण स्वास्थ्य पर सलाह दे चुके हैं। अब तो बात बस इतनी सी है कि जो सरकार और पूंजीपतियों के साथ और उनके पक्ष में नहीं खड़ा होगा वह मारा जायेगा। खुद भारत सरकार आजकल जोर-शोर से कह रही है कि जो सरकार के साथ नहीं है वह विरोध में है और विरोधी एक-एक कर मारे जायेंगे।
दस प्रतिशत विकास दर वाले पूंजीपतियों के चमकते भारत का आज यही यथार्थ है। इस दस प्रतिशत विकास दर की छाया में खड़े हैं मनमोहन सिंह और चिदम्बरम अपने खून से सने हाथ के लिए, उनके थोड़े बगल में खड़े हैं उतने ही खूनी हाथों के साथ आडवाणी और मोदी। टाटा-बिड़ला और अंबानी खून से सने सिक्कों से अपनी तिजोरियां भर रहे हैं और इन्हें ललकार रहे हैं और ज्यादा हत्याओं  के लिए-‘अराजकता, आतंकवाद बर्दाश्त नहीं किया जा सकता’। इस सबसे फुरसत मिलते ही बल्कि इसी दौरान वे 2जी स्पैट्रम घोटाले, आदर्श सोसायटी, कॉमनवेल्थ, येदुरप्पा-रेड्डी ब्रदर्स इत्यादि में लिप्त हो जाते हैं।
ये लोग कभी नहीं बर्दाश्त करेंगे कि विनायक सेन अपनी सेवा-सुश्रुषा से, नारायण सान्याल अपने विद्रोह से इनका यह बना बनाया खेल बिगाड़ें। पूंजीपतियों के अमन में खलल डालने वाले इन लोगों से सख्ती से निपटा जायेगा। रायपुर सेशन कोर्ट खुलेआम इसी का ऐलान करता है।
परन्तु भारत के मजदूर वर्ग और अन्य मेहनतकश जनता का ऐलान भी इतना ही साफ है- आज तुम भले ही हमारे खून-पसीने को निचोड़ कर अपने दस प्रतिशत विकास दर में मगन हो, पर हम तुम्हारे स्वर्ग पर धावा बोलने के लिए आते ही हैं। और तब तुम्हें अपना ही नहीं, अपने पुरखों का भी हिसाब देना होगा। तब तक तुम चाहो तो अपने बनैले चेहरे का प्रदर्शन कर सकते हो।

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