भारत के पूंजीवादी शासक हलकों में आजकल भ्रष्टाचार की कालिख नहीं बल्कि कोलतार छाया हुआ है। कांग्रस, भाजपा से लेकर छोटी-छोटी पूंजीवादी पार्टियों तक, पूंजीवादी घरानों से लेकर पूंजीवादी प्रचार तंत्र तक, सरकारी अफसरों से लेकर न्यायालय तक सभी इस कोलतार के ड्रम में डूबे हुए हैं। कांग्रेस पार्टी के लिए कामनवेल्थ गेम्स, आदर्श सोसाइटी, २ जी स्पेक्ट्रम, भाजपा के लिए कर्नाटक के रेड्डी बन्धु, यदुरप्पा के घोटाले दूर संचार आबंटन में इनकी संलिप्तता, बसपा के लिए मायावती की भू संपत्तियां, सपा के लिए अनाज घोटाला व नीरा यादव, पूंजीवादी घरानों के लिए नीरा राड़िया मामला, पूंजीवादी प्रचारतंत्र के लिए वीर संघवी व बरखा दत्त , न्यायालयों के लिए बालकृष्णन-रघुपति विवाद से लेकर कोलकाता के न्यायमूर्ति तक सभी केवल कुछ बानगियां भर हैं। मुहावरे के अनुसार ही ये तो महज हिमखंड के शिखर हैं। घोटालों का 9/10 तो हमेशा छिपा ही रह जाता है।
पूंजीवादी व्यवस्था के सारे हिस्से-पूंजीवादी घराने, पूंजीवादी पार्टियां, पूंजीवादी प्रचारतंत्र, सरकारी अफसर व न्ययालय अब दो कामों में जुटे हुए हैं, एक, अपनी-अपनी गर्दन बचाने में, दूसरा, पूंजीवादी व्यवस्था को बचाने में। अपने-अपने को बचाने में अक्सर ये दूसरों को भी लपेट रहे हैं। भाजपा व कांग्रेस जी-जान से साबित करने में लगे हुए हैं कि दूसरा उनसे कम भ्रष्ट नहीं है। लेकिन इसके साथ ही वे यह भी साबित करना चाहते हैं कि पूरी व्यवस्था में चन्द लोग हैं जो गलत कर रहे हैं। कुल मिलाकर समुची व्यवस्था ठीक हैं। खराब मछलियों से जो पानी गन्दा कर रहीं हैं। जल्दी ही निपट लिया जायगा।
लेकिन निजी सम्पŸिा की व्यवस्था में खराब मछलियां एक नहीं होती। और पूंजीवादी व्यवस्था में जिसमें सब पैसे के पीछे पागल हों वहां लोग बस इतनी ही सावधानी बरतते हैं कि कानून के फन्दे में न फंसें। स्वयं पूंजीपति वर्ग की निगाह में भ्रष्टाचार वह चीज है जो उसकी व्यवस्था की मशीनरी की गति में घर्षण कम करता है। मशीन बेहतर काम करती है।
भ्रष्टाचार के कोलतार में अपने को इस बुरी तरह लपेट लेने के बाद पूंजीपति वर्ग मजदूरों और सारी मेहनतकश जनता को यह समझाने में लगा है कि यह उसकी पूंजीवादी व्यवस्था का परिणाम नहीं है, यह कुछ व्यक्तियों की करतूत है। लेकिन मजदूर वर्ग के लिए यह स्पष्ट है कि पूंजीवादी व्यवस्था में अन्यथा नहीं हो सकता। मजदूरों से लूटे गये बेशी मूल्य को, मुनाफे को आपस में बांट-बखरा करने के लिए पूंजीपति वर्ग के विभिन्न हिस्से कानूनी और गैर-कानूनी दोनों तरीकों को अपनाते हैं। गैर कानूनी तरीकों में चोरी, डकैती से लेकर भ्रष्टाचार तक सभी आता है। रतन टाटा जैसे चेहरों ने दिखाया कि उजले से उजले पूंजीवादी चेहरों के पीछे यही हकीकत मौजूद है।
मजदूर वर्ग तो रोज ही अपनी जिन्दगी में इस चीज का सामना कर रहा है। एक ओर पूंजीवादी व्यवस्था ने उसके शोषण को कानूनी मान्यता दे रखी है बल्कि समूची पूंजीवादी व्यवस्था उसी पर टिकी है, दूसरी ओर उसे हर जगह गैर कानूनी तरीके से भी लूटा जाता है। उसकी फैक्ट्री में श्रम कानून लागू नहीं होते। श्रम अधिकारी व श्रम न्यायालय पूंजीपतियों से पैसा खाकर उसकी बात नहीं सुनते। पुलिस थाने में भी यही हालत है। पंूजीवादी नेता पूंजीपतियों की जेब में हैं। पूंजीवादी प्रचारतंत्र पूंजीपतियों के ही हैं और उन्हीं का प्रचार करते हैं। न्यायालयों में मुंशी -वकील से लेकर न्यायाधीश तक सभी लक्ष्मी की पूजा में लगे हैं।
ऐसे में मजदूर वर्ग जानता है कि भ्रष्टाचार पूंजीपतियों का अपना खेल है। यदि यह थोड़ा कम हो भी गया तो मजदूर वर्ग की बुनियदी हालत में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन मजदूरों के लिए यह भी साफ है पूंजीपति वर्ग के कोलतार पुते चेहरे को चारों ओर घुमाया जाना चाहिये जिससे पूंजीवादी व्यवस्था के भ्रम के शिकार लोगों की भी आंखें खुल सकें और वे समुची व्यवस्था को उखड़ फेंकने के लिए तैयार हो सकें।
भ्रष्टाचार का खात्मा पूंजीवादी व्यवस्था के निजी संपत्तियां पर आधारित पूंजीवादी व्यवस्था के खात्मे में ही है। और पूंजीवाद का खत्मा मजदूर वर्ग का ऐतिहासिक मिशन है। मध्यम वर्ग के जो भले मानस भ्रष्टाचार से परेशान हैं और उसे खत्म करना चाहते हैं, उन्हें मजदूर वर्ग के इस ऐतिहासिक मिशन का हमसफर बनना होगा। अन्यथा वे पूंजीवादी व्यवस्था पर बस रंग-रोगन कर रहे होंगे।
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