Saturday, June 4, 2016

गुलबर्ग सोसाइटी फैसला : एक और लीपापोती

2 जून को विशेष अदालत ने गुजरात के 2002 नरसंहार में शिकार बनी गुलबर्ग सोसाइटी में हुए हत्याकाण्ड पर फैसला सुनाया। फैसले में 24 को सजा सुनाई गई जबकि 36 को रिहा कर दिया गया। रिहा किये जाने वालों में भाजपा का स्थानीय नेता तथा स्थानीय पुलिस इंस्पेक्टर भी है। इनकी सजा की मात्रा 6 जून को तय होगी।
महत्वपूर्ण बात यह है कि अदालत ने इस मशहूर हत्याकाण्ड में, जिसमें कांग्रेस पार्टी के पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी मारे गये थे, किसी पूर्व नियोजित षडयंत्र को स्वीकार नहीं किया। बयान पक्ष ने दलील दी थी कि भीड़ इसलिए बेकाबू हुई थी क्योंकि जाफरी ने भीड़  पर गोली दागी थी। इस हत्याकाण्ड में कुल 69 लोगों की हत्या हुई थी।
गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकाण्ड पर अदालत का यह फैसला 14 साल बाद आया है। इतने सालों में यह मामला गुजरात पुलिस से लेकर सर्वोच्च न्यायलय तक झूकता रहा है। 
यहां यह गौरतलाब है कि गुजरात के 2002 के नरसंहार में अदालतों ने जितने लोगों को सजा सुनाई है अगर उनके अनुपात को गोधरा काण्ड में सजा पायें लोगों से करें तो कुल तुलना नहीं बैढती। गोधरा काण्ड में दसियों लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई है जबकि उसके बाद के नरसंहार में किसी को भी नहीं। यह अदालतों के पक्षपात का मामला न भी हो तो कम से कम सरकारी मशीनरी (जांच और मुकदमा चलाने वाली मशीनरी समेत) के पक्षपात का तो मामला जरूरी बनता है। इसीलिए गोधरा काण्ड में अभियुक्त बनाये गये लोगां पर आसानी से मुकदमा चला कर सजा सुना दी गई जबकि नरसंहार के मामले में दोषियों पर मुकदमा चलाने के लिए जमीन-आसमान एक करना पड़ा है। केवल व्यवसथा की रक्षा करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से ही कुछ दोषियों को सजा मिल पाई है।
लेकिन इस नरसंहार के सबसे बड़े दोषियों के मामले में सर्वोच्च न्यायालय भी निष्क्रिय है। इसी नरसंहार के बल पर आगे बढ़कर ये आज देश के सबसे शीर्ष व्याक्ति बने बैठे हैं। जिन्हें इतने बड़े नरसंहार के लिए फांसी की सजा होनी चाहिए थी वे आज देश चला रहें हैं और पूंजीवादी प्रचारतंत्र उनके अतीत और वर्तमान के गुनाहों को छिपाकर उनकी जय-जयकार कर रहा है।
इस सबके बावजूद पूंजीपति वर्ग चाहता है कि उसकी व्यवस्था के शोषित उत्पीड़ित लोग उसकी न्याय व्यवस्था में विश्वास करें। अपने कटु अनुभव के बावजूद लोग अभी कर भी रहे हैं। लेकिन यह बहुत दिनों तक नहीं चलेगा। और तब पूंजीपति वर्ग के लिए कयामत का दिन आयेगा और इन सभी गुनहगारों का हिसाब होगा। तब तक ये अपना शैतानी राज चला सकते हैं।

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