भारत सरकार ने पहले के योजना आयोग के बदले अब नीति (नेशनल इंस्टीट्यूशन फार ट्रांन्सफार्मिंग इंडिया) आयोग गठित करने का फैसला किया है। योजना आयोग भवन पर अब नीति आयोग का बोर्ड भी लगाया जा चुका है।
इस नीति आयोग का सांगठनिक ढांचा किसी काॅरपोरेट कंपनी की तरह बनाया गया है। इसके चेयरमैन प्रधानमंत्री होंगे। इसकी गवर्निंग काउन्सिल में प्रदेशों के मुख्यमंत्री होंगे। इसकेा एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी या सी.ई.ओ. होगा। इसी तरह इसके कुछ अन्य अधिकारी होंगे। यह एक थिंक टैंक की तरह काम करेगा और दुनिया भर के अन्य थिंक टैंकों के साथ इसके संबंध होंगे।
विपक्षी दलों द्वारा अनीति या दुर्नीति आयोग कहे जाने वाले इस नीति आयोग का वास्तव में क्या चरित्र होगा ? यह क्या काम करेगा ?
अमेरिका परस्ती को एक कला के स्तर तक पहुंचाने वाले नरेन्द्र मोदी के लिए योजना आयोग के बदले एक सरकारी थिंक टैंक गठित करना उनके चरित्र और दृष्टि के बेहद अनुरूप है। संयुक्त राज्य अमेरिका में भांति-भांति के थिंक टैंकों की भरमार है। ये थिंक टैंक शोध और नीति प्रस्तावक का काम करते हैं। हर चुनाव के बाद बदल जाने वाले उच्चतम प्रशासनिक अधिकारी इन्हीं थिंक टैेंकों से जुड़े होते हैं और थिंक टैंकों से सरकार में तथा सरकार से थिंक टैंकों में आते-जाते रहते हैं। वहां भारतीय नौकरशाही की तरह ‘स्थायी स्टील फ्रेम’ नहीं है जिसमें मंत्रालयों में उच्चतम अधिकारी सिविल सेवा के स्थायी कारकून होते हैं। अपने साथ वे अपनी नीतियां भी सरकार के साथ ले जाते हैं बल्कि उन नीतियों के कारण ही वे सरकार में नियुक्त होते हैं।
उदारीकरण के समूचे दौर में सरकारों को इन थिंक टैंकों ने प्रतिस्थापित किया है बल्कि वे ही वास्तविक सरकार बन गये हैं। उदारीकरण की जिन नीतियों को ‘शिकागो स्कूल’ या ‘वाशिंगटन कन्सेन्सस’ के नाम से जाना जाता है वे इन्हीं थिंक टैंकों के उत्पाद हैं। अमेरिका में उच्च शिक्षा संस्थानों के निजि होने के चलते इन थिंक टैंकों और उच्च शिक्षा संस्थानों के बीच भी सघन रिश्ता होता है। इस तरह कोन्डालिसा राइस कभी जाॅर्ज बुश की सलाहकार होती है, कभी विदेश मंत्री होती हैं, कभी प्रोफेसर होती हैं और कभी थिंक टैंक की विशेषज्ञ। इस तरह थिंक टैंक ज्ञान और ज्ञानियों के मामले में सरकार के आउटसोर्स भी हैं और सरकार के प्रतिस्थापक भी।
अमेरिका परस्त मोदी ने अपने नीति आयोग में इसी माॅडल को अपनाया है। यह अपनी संरचना में ही उदारीकरण का माॅडल है जैसे पुराने जमाने में योजना आयोग अपनी संरचना में राज्य निर्देशित विकास का माॅडल था। हम जल्दी ही इसमें उदारीकरण के धुरंधर समर्थकों को काबिज होते देखेंगे और साथ ही संघियों को भी जो हमेशा से ही निजिकृत-उदारीकृत पूंजीवाद के समर्थक रहे हैं। जगदीश भगवती, अरविन्द विरमानी, अरविन्द पंगरिया इत्यादि इंतजार कर रहे हैं साथ ही खाकी नेकर वाले कई छुटभैये भी। ज्यां द्रेज और अमत्र्य सेन सरीखे लोग कहीं किनारे पड़े सुबकते रहेंगे।
संप्रग सरकार के मनमोहन, मोंटेक तथा चिदंबरम जैसे अमरीकापरस्तों ने भी योजना आयोग को दफनाने की जरूरत की घोषणा की थी पर ऊपरी तौर पर नेहरू की विरासत को ढोने का दावा करने वाली सोनिया-राहुल की मंडली इसकी हिम्मत नहीं जुटा पायी थी। अब अंबानी-अडानी, टाटा-बिड़ला इत्यादि के लाडले नरेन्द्र मोदी ने यह कर दिखाया है।
यह इस बात का संकेत है कि अब निजिकरण-उदारीकरण को एक नये चरण में ले जाया जा रहा है। अब इसे सरकारों की संरचना में ही दाखिल किया जा रहा है। ‘मिनिमम गवर्मेंट, मैक्सिमम गवर्नेन्स’ के मोदी के नारे का यह भी एक व्यवहारिक निहितार्थ है।
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