Tuesday, July 22, 2014

श्रम कानूनों में परिवर्तन का विरोध करो!

       नरेन्द्र मोदी की संघी सरकार ने सत्ता में आते ही श्रम कानूनों में परिवर्तन की ओर कदम बढ़ा दिये हैं। श्रम कानूनों में परिवर्तन बड़े एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग की खास मांग रही है। 
इसके पहले जब भाजपा के नेतृत्व में राजग की सरकार थी तब भी श्रम कानूनों में परिवर्तन की मुहिम चलाई गयी थी। द्वितीय श्रम आयोग की रिपोर्ट इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम था। इसमें श्रम कानूनों में बड़े पैमाने के परिवर्तनों की बात की गई थी। तब राजग सरकार मजदूर वर्ग के दबाव के कारण बहुत आगे नहीं बढ़ पाई थी। लेकिन इसके बावजूद इसने कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन कर दिये थे।
अब भाजपा सरकार का इरादा इस बचे हुए कार्यभार को पूरा करने का है। बड़ा एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग लम्बे समय से यह मांग कर रहा है कि उसे जब चाहे फैक्टरी/संस्थान खोलने-बंद करने की और मजदूरों को रखने-निकालने की इजाजत मिले। इसी के साथ वह मजदूरी, कार्य परिस्थितियों, ट्रेड-यूनियन आदि सारे ही मामलों में मनमानी चाहता है। 

गौरतलब है कि ज्यादातर छोटे व मझोले उद्योगों में श्रम कानून अभी ही लागू नहीं हैं तथा बड़े उद्यमों में भी इनका धड़ल्ले से उल्लंघन हो रहा है। लेकिन तब भी श्रम कानूनों की मौजूदगी एक अंकुश का काम करती है क्योंकि ये मजदूर वर्ग को संघर्ष का एक बिन्दु, एक रैलिंग प्वाइंट प्रदान करते हैं। पूंजीपति वर्ग अपनी बेलगाम लूट के लिये इसे नष्ट कर देना चाहता है। 
पिछले दो दशक से ही पूंजीपति वर्ग श्रम कानूनों में आमूल-चूल परिवर्तन के प्रयासरत रहा है पर अभी तक सफल नहीं हो पाया है। इसमें मजदूर वर्ग के प्रतिरोध की निर्णायक भूमिका रही है। 
अबकी बार भी पूंजीपति वर्ग और मोदी सरकार के कुचक्र को निष्फल करने के लिए मजदूर वर्ग को कमर कस कर संघर्ष के मैदान में उतरना होगा। इसमें मजदूर वर्ग को नेतृत्व प्रदान करने में क्रांतिकारी संगठनों की अहम भूमिका बनती है। 

No comments:

Post a Comment