आजकल अमेरिकी साम्राज्यवादी और उनके द्वारा नियंत्रित प्रचारतंत्र उत्तरी कोरिया के खिलाफ बहुत उन्मादी ढंग से युद्ध का माहौल बना रहे हैं। साथ ही वह इसे कुछ इस रूप में पेश कर रहे हैं मानो उत्तरी कोरिया ही युद्ध पर आमादा हो।
उत्तरी कोरिया एक छोटा सा देश है। आर्थिक तौर पर दक्षिण कोरिया उससे ज्यादा समृद्ध और ताकतवर है। जापान और संयुक्त राज्य अमेरिकी से तो उसकी तुलना करना भी बेमानी है। ऐसे में यह स्वाभाविक सा सवाल उठता है कि उत्तरी कोरिया के शासक अमेरिका, जापान तथा दक्षिण कोरिया के खिलाफ युद्ध जैसा आत्मघाती कदम क्यों उठायेंगे? क्यों वे खुद को ही तबाह करना चाहेंगे?
असल बात यह है कि साम्राज्यवादियों, खासकर अमेरिकी साम्राज्यवादियों को इस बात से बहुत रंज है कि उत्तरी कोरिया के शासक उनके सामने आत्म-समर्पण नहीं कर रहे हैं। ऊपर से तुर्रा यह कि चीनी शासक उन्हें शह देते हैं और पश्चिमी साम्राज्यवादियों की नहीं चलने देते। रूसी साम्राज्यवादी भी चीनी और कोरियाई शासकों का साथ देते हैं।
इसीलिए पश्चिमि और जापानी साम्राज्यवादी गाहे-बगाहे उत्तरी कोरियाई शासकों को दबाव में लेने का प्रयास करते हैं। इसके लिए वे मामले को कुछ इस तरह से पेश करते हैं मानो उत्तरी कोरियाई शासक ही युद्ध पर आमादा हों। उनका भोंपू प्रचारतंत्र इसमें अहम् भूमिका निभाता है।
उस क्षेत्र में तनाव की एकमात्र जड़ अमेरिकी साम्राज्यवादी हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने ही 1950 में कोरिया पर हमला किया जिससे दक्षिणी हिस्से में समाजवादी शासन कायम होने से रोका जा सके। तीन साल के इस युद्ध में बीसों लाख लोग मारे गये। इसके द्वारा अमेरिकी साम्राज्यवादी दक्षिणी हिस्से में पूंजीवादी शासन कायम करने में कामयाब हो गये।
1953 में उत्तरी कोरिया और दक्षिण कोरिया में युद्ध विराम हुआ जो अभी तक चल रहा है। यानी युद्ध औपचारिक तौर पर अभी भी समाप्त नहीं हुआ है। उत्तरी कोरिया ने युद्ध को औपचारिक तौर पर समाप्त करने की कई बार पेशकश की लेकिन अमेरिकी साम्राज्यवादी इसके लिए तैयार नहीं हुए। वे अभी भी तैयार नहीं हैं। उनकी सेनायें अभी भी भारी मात्रा में दक्षिण कोरिया में तैनात हैं।
इसी तरह उत्तरी कोरिया ने दक्षिण कोरिया के साथ एकीकरण की कई बार पेशकश की। यहां तक कि वे “एक देश, दो व्यवस्था” के लिए भी तैयार हो गये। पर अमेरिकी साम्राज्यवादी इसके लिए भी तैयार नहीं हैं। वे उत्तर में भी अपनी मर्जी की खुली पूंजीवादी व्यवस्था चाहते हैं। इससे कम पर राजी होने के लिए वे तैयार नहीं हैं।
ऐसे में उत्तरी कोरिया के शासकों के सामने भी इसके अलावा कोई रास्ता नहीं बचता कि वे आक्रमक रुख अपनायें। इराक और लीबिया के हश्र को देखते हुए तो यह और भी स्वाभाविक है। इसीलिए वे रूसी साम्राज्यवादियों और चीनी शासकों के साथ भी समीकरण बैठाते हैं जिनके इस क्षेत्र में अपने हित हैं।
अमेरिकी साम्राज्यवादियों द्वारा युद्धोन्मादी प्रचार के बावजूद इस बात की संभावना कम है कि वास्तव में कोई युद्ध छिड़े। लेकिन तब भी मजदूर वर्ग और सभी साम्राज्यवाद विरोधियों को अमेरिकी साम्राज्यवादियों की इन हरकतों का पुरजोर विरोध करना चाहिए।
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