पूरे दो हफ़्ते तक बन्द रहने के बाद साइप्रस के बैंक आज खुले। इन बैंकों को दिवालिया होने से बचाने के लिए बन्द कर दिया गया था।
अभी कुछ महीने पहले ही यूरोपीय केन्द्रीय बैंक ने साइप्रस के बैंकों को सुरक्षित घोषित किया था। अब पता चला कि पह सब धोखाधड़ी था। धोखाधड़ी कितने दिन चलती ? अंत में इन बैंकों को बचाने के लिए साइप्रस सरकार उसी कुख्यात तिकड़ी- अतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, यूरोपीय संघ व यूरोपीय केन्द्रीय बैंक के पास पहुंची जहां संकट के समय सभी यूरोपीय सरकारें पहुचती रही हैं। हमेशा की तरह इस तिकड़ी ने इन बैंकों को बचाने के लिए जनता को लूटने की योजना पेश की । बैंकों को बचाने का मतलब असल में बैंकों के मालिकों यानी वित्तीय अधिपतियों को बचाना था। पिछले चार पांच साल से यह जनता को लूट कर किया जा रहा है। इसे सरकार द्वारा किफायत कदम का खूबसूरत नाम दिया गया है।
लेकिन इस बार कुख्यात तिकड़ी बहुत आगे चली गयी। उसने बैंकों यानी वित्तीय अधिपतियों को बचाने के लिए बैंकों में पैसा जमा करने वालों को लूटने की सोची। पेशकश की गयी कि एक लाख यूरो से नीचे जमा कर्ताओं पर 6.75 प्रतिशत तथा उससे उपर के जमाकर्ताओं पर 9.99 प्रतिशत का सीधा कर लगाकर बैंक खातों से कटौती कर ली जाये। यह वित्तीय अधिपतियो द्वारा छोटी संपत्ति वालों को खुले आम कानूनी तरीके से लूटना था। निजी सम्पति की पवि़त्रता और रक्षा की बात करने वाले इस डकैती तक चले गये।
जैसा कि स्वाभाविक था साइप्रस मे इसका जबर्दस्त विरोध हुआ । इसी कारण जब यह प्रस्ताव संसद में लाया गया तो 56 में से 36 सदस्यों ने इसके विरोध में मत दिया।केवल एक वोट पक्ष में पड़ा।सत्ताधारी सांसद भी प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने की हिम्मत नहीं जुटा पाये। उन्होने वोट नहीं डाला ।
पर साम्राज्यवादी वित्तीय अधिपति कहा मानने वाले। उन्होने सरकार पर फिर दबाब डाला और अंततः थोड़ा बदला हुआ प्रस्ताव मनवाने में कामयाब हो गये। नये प्रस्ताव के अनुसार 1 लाख से कम जमाकर्ताओं को छोड़ दिया गया है लेकिन उससे ऊपर जमा को जब्त कर लिया जायेगा। संकट समाप्त होने पर ही इसे वापस दिया जायेगा। अनुमान है कि इस जमा का करीब 40 प्रतिशत हड़प लिया जायेगा।
वित्तीय अधिपतियो की सरकारों द्वारा यह कहा जा रहा है कि साइप्रस एक टैक्स हेवेन है और इस प्रस्ताव से केवल रूस के काले बाजारी ही प्रभावित होंगे जिन्होने अपना काला धन इन बैंको में जमा कर रखा है पर यह आंशिक सच्चाई ही है। ढेरों साइप्रस के लोग सफेद धन वाले भी इससे प्रभावित होंगे ।
पहले प्रस्ताव की पेशकश होते ही साइप्रस में बैंकिग भगदड़ मच गयी थी। लोग डर के मारे पैसा निकालने लगे। ऐसे मे बैंकों को दिवालिया होने से बचाने के लिए बंद कर दिया गया। अब दो सप्ताह बाद साइप्रस सरकार द्वारा नया प्रस्ताव स्वीकार किये जाने के बाद इन्हें आज खोला गया है। पर भगदड अभी भी जारी है। इसलिए सरकार ने बैंको से पैसा निकालने पर बहुत सख्त सीमा लागू कर दी है।
साइप्रस में पिछले दो हफ्ते से ही जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं। केवल आठ लाख आबादी वाले इस द्वीपीय देश में हजारों लोग रोज प्रदर्शन कर रहे हैं। लोग सड़कों पर उतरे हुऐ हैं और सरकार अपने मन की नही कर पा रही है।
साइप्रस के मामले में कुख्यात तिकड़ी ने जो नीति थोपी है वह सीधी डकैती तो है ही साथ ही यह साइप्रस को तीखी मंदी में ढकेल देगी। साइप्रस का यह हाल इस बात का संकेत है कि विश्व आर्थिक संकट खत्म होने के बदले गहरा रहा है और साम्राज्यवादी वित्तीय अधिपति पहले से ज्यादा नंगी लूट पर उतर रहे हैं।
लेकिन साथ ही यह भी उतना ही स्पष्ट हो रहा है कि वित्तीय अधिपतियों और उनकी व्यवस्था के खिलाफ ज्यादा व्यापक संघर्ष विकसित हो रहा है। भारतीय मजदूर वर्ग को भी इसमें बडे पैमाने पर उतरने की जरूरत है।
punjiwad duniya ko barbadi ke alawa kuch nahi de sakta.
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