इस समय बहरीन, यमन और सीरिया में साम्राज्यवादी अपनी कुटिल चालों में व्यस्त हैं। एक ओर वे बहरीन और यमन में जन विद्राहों को कुचलने में वहां के शासकों को मदद कर रहे हैं तो दूसरी ओर वे सीरिया में विद्र्रोहों में अपने पिट्ठुओं को सक्रिय कर उसे अपने हिसाब से मोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
बहरीन में एक समय वह स्थिति बन गई थी कि विद्रोह को संभालना राजा और उसके गुर्गों के बस में नहीं रह गया था। यह बहुत खतरनाक स्थिति थी। तब खाड़ी के देशों के शेख और साम्राज्यवादी आगे आये। खाड़ी के देशों के शेखों और साम्राज्यवादियों में मोल-तोल के बाद यह सहमति बनी कि बहरीन में विद्रोह को कुचलने के लिए सऊदी अरब के शेख वहां सेना भेजेंगे तथा लीबिया पर हमला करने के लिए ये खाड़ी के शेख अपनी अपील जारी करेंगे। यह अरब लीग के तीन और देशों को धमका कर और लालच देकर किया गया। इसके बाद सऊदी अरब की शेखशाही ने बहरीन में अपनी सेना उतार दी जिसने वहां विद्रोह कुचलना शुरू किया। साम्राज्यवादी एक योजना के तहत लीबिया पर हमले का तुमार बांधने लगे और बहरीन में यह घुसपैठ चर्चा से बाहर पर चला गया।
तब से लकर अब तक बहरीन में विद्रोही जनता का बहशियाना दमन जारी है। शहरों ही नहीं, गांव-गांव तक विद्रोहियों को ढूढ-ढूढ कर मारा जा रहा है। जिन मजदूरों ने विद्रोह में भाग लिया था उन्हें उनकी नौकरियों से निकाला जा रहा है। अमेरिकी साम्राज्यवाद के सरगना बराक ओबामा से जब इस बारे में पूछा गया तो उसने बेशर्मी से यह बोल दिया कि अमेरिकी साम्राज्यवादी अपने हितों के हिसाब से चलेंगे। उनके हित यह मांग करते हैं कि उनके पिट्ठू शासकों के विरुद्ध हो रहे विद्राह कुचल दिये जायं। इसीलिए वे इसे कुचलने मेंु पूरा जोर लगा रहे हैं।
यमन में हालात बहरीन की तरह ही गंभीर हैं। वहां राष्ट्रपति सालेह के खिलाफ विद्रोह में अब तक शासकों द्वारा सैकड़ों लोग मारे जा युके हैं। लेकिन साम्राज्यवादी सालेह को हर कीमत पर बचाना चाहते हैं। विद्रोही जनता को शांत करने के लिए वे सालेह से समय-समय पर घोषणा करवाते रहे हैं कि वह इतने या उतने समय बाद गद्दी छोड़ देगा। लेकिन विद्रोही जनता इतनी बेवकूफ नहीं है। वह पीछे हटने को तैयार नही है। इसका परिणाम यह हुआ है कि कुछ सालेह समर्थकों ने भी उसका साथ छोड़ दिया है। वे समय रहते पाला बदल लेना चाहते हैं। यही नहीं वे चाहते हैं कि इस तरह पाला बदलकर वे विद्रोह के नेता बन जायं और सŸाारुढ हो जायं। यदि सालेह को जाना पड़ा तो यह साम्राज्यवादियों के लिए भी सबसे अनुकूल स्थिति होगी।
बहरीन और यमन से ठीक उलट स्थिति सीरिया की है। वहां साम्राज्यवादी चाहते है कि राष्ट्रपति बशीर का तख्तापलट कर दिया जाय। सीरिया उन देशों में है जहां अमेरिकी साम्राज्यवादी लम्बे समय से सŸाा परिवर्तन करने की फिराक में रहे हैं। इसकी सीधी सी वजह यह है कि यहां सŸााधारी बाथ पार्टी और उसके शासक अमेरिकी साम्राज्यवादियों के इशारों पर नहीं नाचते।
लेकिन सीरिया के वर्तमान शासक भी अरब दुनिया के ढेरों तानाशाह की तरह तानाशाह हैं। उन्होंने बाहरी खतरे की आड़ में लम्बे समय से अपने यहांे जनवादी अधिकारों का गला घोट रखा है। यह सब स्थानीय पूंजीवादी शासकों के हित में है।
स्वाभाविक ही कि यहां भी अरब विद्रोहों की लपटें देर-सबेर पहुंचतीं। और वे पहंुचीं। पहले छिटपुट और फिर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरु हो गये। लेकिन इनकी दिक्कत यह रही कि यहां साम्राज्यवादी एकदम शुरू से सक्रिय हो गये और उन्होंने विरोध प्रदर्शनों को अपना रंग देने की कोशिश की।
अन्य विरोधी देशों की तरह सीरिया में भी अमेरिकी साम्राज्यवादी एक विपक्ष को पालने पोसने का प्रयास करते रहे। जैसे ही सीरिया में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, उसमें यह विपक्ष सक्रिय हो गया। यही नहीं, साम्राज्यवादियों ने वहां अपने एजेन्टों से पुलिस पर हमला भी करवाया। साम्राज्यवादी, खासकर अमेरिकी साम्राज्यवादी पूरे प्रयास में हैं कि सीरिया में भी लीबिया जैसे हालात बन जायं जिससे वे बहाना बनाकर उस पर हमला कर सकें। बहरीन के मामले पर चुप्पी साधे हुए साम्राज्यवादी सीरिया के मामलंे में धुंआधार प्रचार कर रहे हैं।
लेकिन इतना सब करके भी अमरिकी व अन्य साम्राज्यवादी अरब जगत में अपने मन की नहीं कर पा रहे हैं। वहां चीजें उनके मन मुताबिक नहीं हो रही है।
भारत के मजदूर दृढ़तापूर्वक अरब जगत के मजदूरों के साथ खड़े हैं और साम्राज्यवादियों की कुटिल चालों का विरोध करते हैं।
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